SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ओसवाल ज्ञाति समय निर्णय. ( ९ ) विषय में आज तक कोई भी इनसे खिलाफ प्रमाण नहीं मिलता है और जबतक खिलाफमे कोइभी प्रमाण न मिले वहाँ तक इसपर पूर्ण विश्वास रखना किसी प्रकार से अनुचित नहीं समझा जावेगा इससे उपर लिखी दन्तकथा भी विश्वसनीय मानी जा सकती है । (३) तीसरा मत जो विक्रमकी दशवी सदी में ओसवाल ज्ञाति की उत्पतिका अनुमान करते है यह केवल भ्रमणा मात्र ही है कारण उन लोगोंने केवल ओसवाल और ओशियों नगरी इस नाम पर आरूढ हो यह अनुमान किया है अगर ओसवाल शब्दके लिये ही माना जावे तो वह सत्य भी हो सकते है कारण उक्त दोनों नामों की उत्पत्ति विक्रम की इग्यारवी शताब्दी मेंही हुइ है परन्तु इससे यह नहीं समझा जावे कि श्रोशियों नगरी व ओसवाल ज्ञातिकी मूल उत्पत्ति उस समय हुईथी इस विषय में हमकों दीर्घ द्रष्टि से विचार करना होगा कि ओशियों नगरी और ओसवाल ज्ञातिका नाम शरूसे यह ही था वह किसी मूल नामका अपभ्रंश हुवा है । प्राचीन ग्रन्थ व शिलालेखों द्वारा यह पत्ता मिलता है कि आज जिस नगरीको हम ओशियों के नामसे पुकारते है उस नगरीका नाम पूर्व जमाने में उएसपुर उकेशपुर-घोर संस्कृत साहित्यमें उपकेशपुर मिलता है । देखिये ओशिया महावीर मन्दिरका शिलालेख जो श्रीमान् बाबु पुरणचंदजीने " जैन लेख संग्रह प्रथम खण्ड " में छपाया है जिस के पृष्ट १९२ लेखांक ७८८ में. + + XX “ समेतमेतत्प्रथितं पृथिव्यमुपकेश नामास्ति पुरं "++ For Private and Personal Use Only
SR No.020519
Book TitleOswal Gyati Samay Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherGyanprakash Mandal
Publication Year
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy