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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध है। इसके किले में छठी शताब्दी के कच्छवाहा वंश के वज्रदम्म जैनधर्म का भक्त था, उसने एक जैनमूर्ति स्थापित की। इसके प्रतिहार शासक भी जैनधर्म के भक्त थे, जिनका शासन 1593 ई तक चला। यह सभी जैनधर्म, जैन संस्कृति, जैन साधुओं के सहयोगीथे, इसलिये इस युग को जैनधर्म का स्वर्णयुग कह सकते हैं।' हाथीद्वार और सास बहूद्वार के बीच के एक जैन मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित किया गया। उर्बही गेट के पास 75 फीट ऊँची एक आदिनाथ की मूर्ति है। देवकुण्ड जैन संस्कृति में दिगम्बर परम्परा का केन्द्र था। ग्वालियर भी भट्टारकों का महत्वपूर्ण केन्द्र था। वेल्सा जिले के उदयगिरि में तो 425-26 ई. की पार्श्वनाथ की मूर्ति मिली है। नरवाड़ा में 1213 ई और 1348 ई के मध्य की मूर्तियां उपलब्ध हुई है। ऐसा पता चलता है कि मध्यप्रदेश में दिगम्बर परम्परा का वर्चस्व था। ___ जहाँ तक उत्तरप्रदेश का प्रश्न है, यह जैनमत की दृष्टि से अति प्राचीन है। भगवान ऋषभदेव यहीं अयोध्या में और भगवान पार्श्वनाथ वाराणसी में जन्मे । कोई आश्चर्य नहीं कि ईसा की आठ शताब्दी के पहले से लेकर दसवीं-बारहवीं शताब्दी तक जैनमत का यहाँ बहुत प्रचार-प्रसार हुआ। अयोध्या भगवान ऋषभदेव के अलावाअजितनाथ, अभिनन्दन, सुमतिनाथ और अनन्तनाथ की भी जन्मभूमि रही है। सरयू नदी के किनारे कुछ जैनमंदिर हैं। श्रावस्ती तीसरे तीर्थंकर सम्भवनाथ की जन्मभूमि थी। कौसाम्बी छठे तीर्थंकर पद्मप्रभु की जन्मभूमि थी। सारनाथ में ग्यारहवें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ, चन्द्रपुरी में आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभु, फैजाबाद के कम्पिला में तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथ, रतनपुरा में पन्द्रहवें तीर्थंकर धर्मनाथ और हस्तिनापुर में सोलहवें, सत्रहवें और अट्ठारहवें तीर्थंकर शांतिनाथ, कुंथुनाथ और अरनाथ जन्मे। आगरा के पास सौरीदार में बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ जन्मे । मथुरा जैनमत का प्राचीन केन्द्र रहा है। यहाँ तीसरी शताब्दी का जैनस्तूप उपलब्ध है। जिनप्रभ सूरिके अनुसार यहाँ यक्ष कुबेर ने सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के सम्मान में एक स्तूप का निर्माण करवाया। मथुरा के जैन समुदाय ने केवल चार तीर्थंकरों का ही चयन किया- प्रथम ऋषभनाथ, सातवें सुपार्श्वनाथ, तेबीसवें पार्श्वनाथ और चौबीसवें महावीर। जैनमत का उद्गम सर्वप्रथम पूर्वी भारत में हुआ और फिर इसका प्रसार पूरे भारत में फैला। जहाँ इसका उद्गम हुआ, वहाँ इसने वर्चस्व खो दिया, किन्तु दक्षिणऔर पश्चिम में इसके 1. Jain Journal, April 69, Page 179 All of them were great patrons of Jain religion, Jain culture & Jain monks & this religion, therefore had its golden age in this region. 2. वही, पृ 181. 3. वही, पृ 183 It is no wonder therfore, that Jainism was in a most flourishing condition from the 8th century B.C. to the 10th or 12th centuries A.D. in Uttar Pradesh. 4. वही, पृ185 5. वही, पृ 186 According to Jinprabha Suri, it believed that the ancient stupa was erected by Kuvera Yaksa in honour of 7th Tirthankara Suparsvanath For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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