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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 46 www.kobatirth.org भगवान पार्श्वनाथ निस्संदेह ऐतिहासिक पुरुष थे, यह आज ऐतिहासिक तथ्यों से असंदिग्ध रूप में प्रमाणित हो चुका है। जैन साहित्य ही नहीं, बौद्ध साहित्य से भी भगवान पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता प्रमाणित है।' आधुनिक इतिहासकार पार्श्वनाथ को निर्ग्रथ सम्प्रदाय प्रवर्तक मानते हैं । वस्तुतः निर्ग्रथ परम्परा पार्श्वनाथ के पहले ही विद्यमान थी । डा. हर्मन जैकोबी के अनुसार यह प्रमाणित करने के लिये कोई आधार नहीं है कि पार्श्वनाथ जैनधर्म के संस्थापक थे । जैन परम्परा ऋषभ को प्रथम तीर्थंकर (आदि संस्थापक) मानने में सर्वसम्मति से एकमत है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वनाथ के शिष्यों की लम्बी परम्परा थी। श्वेताम्बरी जैनागमों में अनेक व्यक्तियों को “पासावाच्च्चिज्ज' कहा गया है। इसका संस्कृत रुप पार्श्वतत्यीय है । इसका अर्थ है - पार्श्वस्वामी के शिष्य । 'आचरांग सूत्र' में भगवान महावीर के पिता सिद्धार्थ पार्श्वपत्यीय श्रमणोपासक और माता त्रिशला को पार्श्वापत्यीय श्रमणोपासका लिखा है। भगवान पार्श्वनाथ के चतुर्याम धर्म- हिंसा का त्याग, असत्य का त्याग, . चौर्य त्याग और परिग्रह के त्याग के साथ इनकी वाणी में करुणा, मधुरता और शान्ति की त्रिवेणी एक साथ प्रवाहित होती थी । परिणामत: जन जन के मन पर उनकी वाणी का मंगलकारी प्रभाव पड़ा, जिससे हजारों नहीं लाखों लोग उनके अनन्य भक्त बन गये। 2 एक मान्य वैदिक ऋषि पिप्पलाद, प्रख्यात ब्राह्मण ऋषि भरद्वाज, उपनिषदकालीन वैदिक ऋषि नचिकेता, वैदिक क्रियाकाण्ड के विरोधी अजित केश कम्बल - सब पर पार्श्वनाथ का प्रभाव पड़ा। उस समय समस्त व्रात्य क्षत्रिय सब जैनधर्म के उपासक थे । पार्श्वनाथ के समय में पार्श्वनाथ ही इष्टदेव माने जाते थे । पूर्व महावीर युग में भगवान ऋषभदेव ने जैनमत का प्रवर्तन किया, किन्तु दूसरे तीर्थंकर से लेकर बाईसवें और तेईसवें तीर्थंकर - अरिष्टनेमि और पार्श्वनाथ तक के युग को हम जैनमत का प्रवर्द्धनकाल कह सकते हैं। अरिष्टनेमि और पार्श्वनाथ ने श्रमण परम्परा के प्रवर्द्धन में योग देकर जैनमत के विकास की पृष्ठभूमि निर्मित की। 1. जैन धर्म का मौलिक इतिहास, प्रथम खण्ड, पृ499 2. वही, पृ 503 3. वही, पृ 507 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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