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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 43 डा. भण्डारकर ने पुराणों के विश्वकसेन और जातकों के विस्ससेन, पुराणों के उदकसेन और जातकों के उदयमह को एक ही बतलाया है। डा. राय चौधरी के अनुसार भारतवंश का स्थान एक नये वंश ने लिया, जिसका वंशनाम ब्रह्मदत्त था । हारीत कृष्णदेव ने ब्रह्मदत्त को वंशनाथ माना है । 'महाभारत' में 100 ब्रह्मदत्तों का निर्देश है। जातक में काशीराज ब्रह्मदत्त के युवराज सोट्ठीसेन को 'विदेह पुत्र' कहा है।' आजकल के इतिहासकार पार्श्व को उरग या नागवंशी भी कहते हैं । चौधरी ने कुम्भकार जातक के उल्लेखानुसार उत्तर पांचाल का राजा दुम्मुख, लिंग का राजा करण्डु, गांधार का राजा नगजित (नग्नजित) और विदेह का राजा नाभि, ये सब समकालीन थे । 2 'जैन उत्तराध्ययन सूत्र में इन सबको जैनधर्म का अनुयायी माना है। डा. राय 12 चौधरी ने इन राजाओं के समय को 777 ई. पू. और 543 ई. पू. के बीच रखा है, क्योंकि यह सभी महावीर के पूर्ववर्ती थे । इन राजाओं का निर्देश ऐतरेय ब्राह्मण' और शतपथ ब्राह्मण' में भी मिलता है। डा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन साहित्य में पार्श्वनाथ के पिता का नाम अश्वसेन या अस्ससेण बतलाया है। यह नाम न तो हिन्दू पुराणों में मिलता है और न जातकों में मिलता है। गत शताब्दी में रचे पार्श्वनाथ पूजन में इनके पिता का नाम विस्ससेन रखा है- “तहाँ विस्ससेन नरेन्द्र उदार ।' डा. भण्डारकर ने जातकों के आधार पर ब्रह्मदत्त के अतिरिक्त वाराणसी के छ राजा बतलाए हैं- उग्गसेन, धनंजय, महासीलव, संयम, विस्ससेन, उदयभट्ट । इस प्रकार जातकों के विस्ससेण और पुराणों के विश्वकसेन के साथ इसकी एकरूपता बैठती है । पार्श्वनाथ ने तीस वर्ष की अवस्था में दीक्षा ली, तब एक बार एक नाग युगल को पीड़ित देखा, पार्श्वनाथ ने उन्हें बचाया और धर्मोपदेश दिया। इससे यह निष्कर्ष भी निकाला गया है कि पार्श्वनाथ के वंश का नागजाति के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध था । नामकरण के विषय में उल्लेख है कि इनके पिता अश्वसेन के अनुसार “बालक के गर्भस्थ रहते समय इनकी माता ने अंधेरी रात्रि में पास (पार्श्व) में चलते हुए सर्प को देखकर मुझे सूचित किया और अपनी प्राणहानि से मुझे बचाया, अतः इस बालक का नाम पार्श्वनाथ रखना चाहिये ।'' श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के कुछ प्रमुख ग्रंथों में यह उल्लेख मिलता है कि वासुपूज्य, मल्ली, नेमि, पार्श्व और महावीर कुमार अवस्था में दीक्षित हुए, इसी आधार पर दिगम्बर परम्परा इन्हें अविवाहित मानती है। श्वेताम्बर मान्यता है कि तीस वर्ष तक गृहस्थ जीवन में रहकर भी पार्श्व काम भोग में आसक्त नहीं हुए। आपको चैत्रकृष्ण चतुर्थी के विशाखा नक्षत्र में चंद्र के योग के समय केवल ज्ञान 4. शतपथ ब्राह्मण 81-4-10 5. त्रिषष्टि शलाका पुरिस चरित 9-3-45 1. Dr. R. Chaudhary, Political History of Ancient India, Page 64. 2. वही, Page 124 3. ऐतरेय ब्राह्मण 7-34 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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