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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 41 और अनेक कलाओं का पारंगत था। वासुदेव के सम्बन्ध में शिकायत मिलने पर समुद्रविजय ने उसे महल से निकलने पर टोक लगा दी, किन्तु वह घूमता घूमता कंस से मिला। कंस उग्रसेन का पुत्र था। एक बार जरासंध ने समुद्रविजय को अपने शत्रु पर आक्रमण करने की आज्ञा दी। समुद्रविजय ने कंस के साथ वासुदेव की अधीनता में एक सेना भेजी। जरासंध ने प्रसन्न होकर वासुदेव को मथुरा राज्य और अपनी पुत्री देनी चाही, किन्तु वसुदेव ने अस्वीकार कर दिया और कंस को उस पारितोषिक का अधिकारी बताया। जरासंध ने कंस के साथ अपनी पुत्री का विवाह करके उसे मथुरा राज्य दे दिया। जैन पुराणों के अनुसार सौरिपुर में समुद्रविजय के यहाँ अरिष्टनेमि नाम का पुत्र हुआ। उससे प्रथम समुद्रविजय के लघुभ्राता वसुदेव से वासुदेव श्रीकृष्ण का जन्म हो चुका था। 'अरिष्टनेमि निवृत्तिमार्गी' थे और श्रीकृष्ण प्रवृत्तिमार्गी। अरिष्टनेमि ने ही भविष्यवाणी की थी कि “आज से बारहवें वर्ष में मद्यपान के निमित्त में द्वीपायन मुनि के क्रोध से द्वारकापुरी का विनाश होगा और वन में सोते हुए श्री कृष्ण का अन्त जरत् राजकुमार के निमित्त से होगा।" छान्दोग्य उपनिषद के अनुसार देवकी पुत्र श्रीकृष्ण को घोर आंगिरस का शिष्य माना गया है। आंगिरस ऋषि ने देवकी पुत्र श्रीकृष्ण को कुछ नैतिक तत्वों का उपदेश दिया, जिसमें अहिंसा भी है । उपनिषदों ने यहीं से अहिंसा तत्व ग्रहण किया। श्री धर्मानन्द कौशाम्बी ने घोर आंगिरस के अरिष्टनेमि होने की सम्भावना व्यक्त की है, क्योंकि जैन ग्रंथकारों के अनुसार श्री कृष्ण के गुरु नेमिनाथ तीर्थंकर थे। ___ 'अथर्ववेद', 'प्रश्नोपनिषद' और मुण्डक उपनिषदों में अरिष्टनेमि का नाम आया है। 'महाभारत' में कहा गया है __कालनेमि महा वीरः शूरः शौरिजनेश्वरः।। आगरा जिले में बटेश्वर के पास शौरिपुर नामक स्थान है। प्रारम्भ में यही यादवों की राजधानी थी। जरासंध के भय से यादव लोग यहीं से भागकर द्वारिकापुरी में जा बसे थे। यहीं पर अरिष्टनेमि का जन्म हुआ, इसलिये उन्हें शौरि भी कहा गया है खेताद्रो जिनो नेर्मियुगादिर्विमलचले । ऋषिणामाश्रमादेव मुक्तिमार्गर य कारणम्॥ 'स्कन्दपुराण' में अरिष्टनेमि का उल्लेखकर उन्हें मोक्षमार्ग का कारक बताया गया है। भवस्य पश्चिमे भागे वामनेन तपः कृतम् । तनैव तपसाकृष्टः शिवः प्रत्यक्षतः गतः ॥ पद्मासनः समासीन श्याममूर्ति दिगम्बरः । नेमिनाथः शिवोऽयैतं नाम चक्रेऽस्य वामनः ॥ कलिकाले महाघोरे सर्वपाप प्रकाशकः । दर्शनाथ् स्पर्शानादेव कोटि यज्ञ फल प्रदः ॥ 1. महाभारत: अनुशासनपर्व, 82 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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