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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 37 पुष्य नक्षत्र में निर्वाण पद प्राप्त किया। 14. श्री अनन्तनाथ चौदहवें तीर्थंकर अनन्त नाथ पूर्वभव में अरिष्टानगरी के महाराज पद्मरथ थे। पद्मरथ के जीव ने श्रावण कृष्णा सप्तमी को रेवती नक्षत्र में माता सुयशा की कुक्षि में स्थान ग्रहण किया। इनके पिता अयोध्या के महाराज सिंहसेन थे। इनका जन्म वैसाख कृष्णा त्रयोदशी को रेवती नक्षत्र के समय हुआ। महाराज सिंहसेन ने माना “बालक की गर्भावस्था के समय मैंने उत्कट अपार शत्रु सैन्य पर विजय प्राप्त की, इसलिये बालक का नाम अनन्तनाथ रखा जाय।''। 'पाणिग्रहण के पश्चात् एक हजार राजाओं के साथ वैसाख कृष्णा चतुर्दशी को रेवती नक्षत्र में दीक्षा ग्रहण की और चैत्र शुक्ला पंचमी को रेवती नक्षत्र में निर्वाण पद प्राप्त किया। 15. श्री धर्मनाथ पन्द्रहवें तीर्थंकर श्री धर्मनाथ पूर्वकर्म से भद्दिलपुर के महाराज सिंहरथ थे, जिन्होंने वैसाख शुक्ला सप्तमी को पुष्य नक्षत्र में रत्नपुर के महाराज भानु की महारानी सुव्रता के गर्भ में स्थान ग्रहण किया। पिता ने कहा, "बालक के रहते माता की भावना सदा धर्ममय रही, अत: बालक का नाम धर्मनाथ रखा जाता है। पाणिग्रहण के पश्चात् माघ शुक्ला त्रयोदशी को पुष्य नक्षत्र में दीक्षा ग्रहण की और पौष शुक्ला पूर्णिमा के दिन केवल ज्ञान प्राप्त किया। ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को तीर्थंकर धर्मनाथ ने निर्वाण पद प्राप्त किया। 16. श्री शांतिनाथ सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ पूर्वभव में रत्नसंचया नगरी के महाराज मेघरथ थे। भाद्रपद कृष्णा सप्तमी को भरणी नक्षत्र में हस्तिनापुर के महाराज विश्वसेन की महारानी की कुक्षि के गर्भ में स्थान ग्रहण किया और ज्येष्ठ कृष्णात्रयोदशी को भरणी नक्षत्र में जन्म हुआ। महारानी अचिरादेवी के गर्भ में प्रभु का आगमन होते ही महामारी का भयंकर प्रकोप शांत हो गया, अत: बालक का नाम शांतिनाथ रखा गया। विवाह के पश्चात् आपने चक्रवर्ती पद से सम्पूर्ण भारतवर्ष पर शासन किया और एक हजार राजाओं के साथ कृष्णा चतुर्दशी के दिन भरणी नक्षत्र में दीक्षा ग्रहण की। आपको केवल ज्ञान की प्राप्ति पौष शुक्ला नवमी को भरणी नक्षत्र में हुई और ज्येष्ठ कृष्णा त्रयोदशी को भरणी नक्षत्र में निर्वाण पद प्राप्त किया। 17. श्री कुंथुनाथ जी सत्रहवें तीर्थंकर पूर्व भव में खडगी नगरी के महाराज सिंहावत थे। सिंहावत के जीव ने महारानी श्रीदेवी की कुक्षि में श्रावण वदी नवमी को कृतिका नक्षत्र में गर्भ रूप में स्थान ग्रहण किया। वैसाख शुक्ला चतुर्दशी को कृतिका नक्षत्र में प्रभु ने जन्म लिया। 1. चउपन्न महापुरिस चरित, पृ 129 2. त्रिषष्टि शलाका पुरिष चरित, पृ49 3. चउपन्न महापुरिस चरित, पृ 150 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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