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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 33 अथर्ववेद के आधार पर ए. बी. कीथ ने इसका निराकरण कर कहा कि यह सिद्ध नहीं होता कि व्रात्य रुद्र शिव था । श्वेताश्वर उपनिषद' में कहा गया है - यो देवात्ं प्रभवश्च डर्गभवश्च विश्वाधियो रुद्रो महर्षि हिरण्यगर्भं जनयायास पूर्वम् Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यदि व्रात्य हिरण्यगर्म है, तो प्रश्न उठता है कि हिरण्यगर्म कौन व्यक्ति है। जैन शास्त्रों में ऋषभदेव को हिरण्यगर्भ माना है। प्रागैतिहासिक युग: अधिशेष तीर्थंकर प्रागैतिहासिक काल के द्वितीय तीर्थंकर अजितनाथ से लेकर इक्कीसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ और ऐतिहासिक काल के दो तीर्थंकरों भगवान अरिष्टेनमि और भगवान पार्श्वनाथ के काल को जैनमत के इतिहास का प्रवर्द्धन काल कह सकते हैं। 2. श्री अजितनाथ ऋषभदेव के पश्चात् द्वितीय तीर्थंकर अजितनाथ हुए। जम्बूद्वीप महाविदेह क्षेत्र में सीता नामक नदी के दक्षिणी तट पर सुलीमा नामक नगरी थी। इसी के राजा विमलवाहन अगले जीवन में इक्ष्वाकुवंशीय महाराजा जित शत्रु की महारानी विजया देवी के गर्भ में उत्पन्न हुआ । माघ शुक्ला अष्टमी की महापुनीता रात्रि में रोहिणी नक्षत्र में पुत्ररत्न का जन्म हुआ। राजा ने कहा, जब से यह अपनी माता के गर्भ में आया, तब से मुझे कोई जीत नहीं सकता, इसलिये यह अजितनाथ है । इनके भाई का नाम सगर कुमार था। महाराजा अजितनाथ का आदर्श शासन रहा। अजित ने बड़े भाई की तरह सगर का राजाभिषेक किया। माघ शुक्ला नवमी के दिन रोहिणी नक्षत्र में अजितनाथ ने स्वयं वरमालाओं को उतार कर दीक्षा ग्रहण की। अजितनाथ बारह वर्ष तक ग्राम ग्राम विचरण करते रहे । आपका निर्वाण चैत्र शुक्ला पंचमी को मृगशीर्ष नक्षत्र में हुआ । इनके अनुज सगर ने भी अपने पौत्र भगीरथ को राज्य सिंहासन पर आसीन किया और भगवान अजितनाथ चरणकमलों में श्रमण धर्म अंगीकार किया । 1. श्वेताश्वर उपनिषद 15-5-1 2. तिलोयण्णति, गाथा 526-549 3. चउपन्न महापुरिस चरित पृ 72 3. श्री सम्भवनाथ भगवान अजितनाथ के बाद तीसरे तीर्थंकर श्री सम्भवनाथ हुए। क्षेमपुरी के राजा विपुलवान ने श्रावस्ती नगरी के महाराज जितारी के यहाँ पुत्र रूप में जन्म लिया । आपने फाल्गुन शुक्ला अष्टमी को मृगशिर नक्षत्र में जितारी के यहाँ जन्म लिया । आपकी माता का नाम सुसेना था । उस समय देश की भूमि धनधान्य से लहलहा उठी, अतः माता पिता ने नाम सम्भवनाथ रखा। इनके विवाह के पश्चात् इनके पिता प्रव्रजित हुए । मगसिर सुदी पूर्णिमा को गव्भये जिणिदे णिहाणाइयं बहुयं संभूया, जायभ्भिय रजस्स सयलस्स वि सुहं संभूय ति कलिऊण संभवाहिहाणं कुणति सामिणो । For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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