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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वितीय अध्याय ओसवंश का प्रेरणा स्रोत : जैनमत ओसवंश और जैनमत ओसवंश और जैनमत एक दूसरे से अविच्छिन्न रूप से जुड़े हैं। ओसवंश के अस्तित्व की कल्पना जैनमत के परे नहीं की जा सकती। इस जाति की मानसिकता, इसकी नैतिकता, इसका समाजशास्त्र, धर्मशास्त्र और दर्शनशास्त्र का मूलाधार जैनमत है। ओसवंश का इतिहास जैनधर्म के इतिहास से बहुत अलग नहीं है, जैनधर्म यदि एक निर्बन्ध झरना है, तो इसकी सीमा में बंधकर बहने वाली ओसवाल संज्ञक जाति को सरिता कहा जा सकता है।' ओसवंश की निर्झरिणी जैनमत से ही प्रवाहित है। जैनमत का सांस्कृतिक संदर्भ ओसवंश के रूप में प्रस्फुटित हुआ है। जैनमत और जैनाचार्यों ने युगों युगों से जिस जीवन शैली की प्रस्थापना की, उसकी प्रयोगशालाओसवंश है। जैनमतः ऐतिहासिक यात्रा प्रागैतिहासिक युग से लेकर आजतक-आदि तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर आजतक जैनमत ने लम्बी यात्रा पूरी की है, उसे तीन युगों में विभाजित किया जा सकता है। 1. पूर्व महावीर युग : जैनमत का प्रवर्तन और प्रवर्द्धनकाल 2. महावीर युग : जैनमत का विकासकाल 3. महावीरोत्तर युग : जैनमत का प्रसारकाल (1) पूर्व महावीर युग : जैनमत का प्रवर्तन और प्रवर्द्धनकाल सिन्धुघाटी में जैनमत के अवशेष भारत में आर्यों के पूर्व सिंधुघाटी की सभ्यता वर्तमान थी। यह सभ्यता ईसा के चार हजार वर्ष पूर्व की है। मोहनजोदड़ो निवासी योग की प्रणालियों से परिचित थे। श्री रामचंद्र चंदा के अनुसार “मोहनजोदड़ो से प्राप्त पत्थर की मूर्ति, जिसे पुजारी की मूर्ति समझ लिया गया है, वह मुझे इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये प्रेरित करती है कि सिन्धुघाटी की सभ्यता में योगाभ्यास होता था और योग की मुद्रा में मूर्तियां पूजी जाती थी।" उस समय की खड़ी मूर्तियां योग की कायोत्सर्ग की मूर्तियां हैं।' डा. राधाकुमुद मुखर्जी के अनुसार “यह मुद्रा जैन योगियों की तपश्चर्या में विशेष रूप से मिलती है। यदि ऐसा हो तो शैवधर्म की तरह जैन धर्म का मूल भी ताम्रयुगीन सिन्धु सभ्यता तक चला जाता है। वस्तुत: श्रमण परम्परा श्रमणों की योगियों की परम्परा है। मोहनजोदड़ो की 1. मनमोहिनी, ओसवालः दर्शन : दिग्दर्शन, पृ23 2. पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, जैन साहित्य का इतिहास, पृ99. 3. वही पृ. 101 4. डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी, हिन्दू सभ्यता, पृ 23-24 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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