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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 430 (1031 ई), लूणवसहि (प्रतिष्ठा 1230 ई- नागेन्द्रगच्छ के विजयसेन सूरि), जैनमंदिर भीमाशाह (पन्द्रहवीं शताब्दी के मध्य), चौमुखा यापार्श्वनाथमंदिर (खरतरगच्छाचार्य जिनचन्द्रसूरि-1458 ई) मंदिर वर्धमान स्वामी (पन्द्रहवीं शताब्दी) अचलगढ़, मन्दिर चौमुखी (1509 ई का लेख), आदिनाथ मंदिर, कुंथुनाथ मंदिर (प्रतिष्ठा 1470 ई) है, नरेना (1026 ई का अभिलेख), मूंगथला (सिरोही, नवीं शताब्दी के पूर्व का), तलवाड़ा (बांसवाड़ा के पास, 10वीं शताब्दी में प्रद्युम्न सूरि आए थे) मोरवानो (देशनोक के पास, 1666 ई का अभिलेख), फलौदी 1124 ई में धर्मघोष सूरि ने तीर्थ की स्थापना की), जीरावला (देलवाड़ा के चित्र, जैनाचार्य देवसूरि ने 274 ई में इसकी प्रतिष्ठा की,' हरिभद्रसूरि के शिष्य शिवचन्द्र गणी ने यहाँ यात्रा की, हरिदत्तसूरि ने इस मंदिर की प्रतिष्ठा की', किराडू (वर्तमान में कोई मंदिर नहीं), भीनमाल (सिद्धसेन सूरि ने भीनमाल के जैनतीर्थ कहा ),ओसिया (8वीं शताब्दी में प्रतिहार वत्सराज का शासन, 18 जैन और ब्राह्मण मंदिर, 700-800 ई के मध्य के हैं, महावीर मंदिर पर 895 का अभिलेख, मेड़ता (3वीं शताब्दी में अभयदेवसूरि ने ब्राह्मणों को जैनमत में दीक्षित कर यहाँ मंदिर का निर्माण करवाया, जिनचंद्रसूरि 1322 ई. में आए और 24 दिन तक विहार किया, जालोर (जाबालिपुर, सिद्धसेन सूरि ने इस तीर्थ का उल्लेख किया है, 1182 ई. में यशोवीर नाम श्रीलाली वैश्य ने अपने भाई यशराज, जगधर तथा गोष्ठी के समस्त सदस्यों के साथ आदिनाथ मंदिर में एक मण्डप बनवाया था, 1164 ईकाअभिलेख भी है पार्श्वनाथ मंदिर में है, भण्डारी यशोवीर ने 1185 ई में इसको पुनर्निर्मित करवाया, 1126 ई में नरपति नामक ओसवाल ने इस मंदिर (तृतीय महावीर मंदिर) को 100 द्रम भेंट की, 1224 ई में जिनेश्वर सूरि ने इस मंदिर पर ध्वजा फहराई, 1300 ई के अभिलेख से ज्ञात होता है कि नरपति और उसके पिता ओसवाल सोनी थे सांचोर (1265 ई के एक अभिलेख के अनुसार ओसवाल भण्डारी छाधिका ने एक चतुष्किका का जीर्णोद्धार करवाया,' 1226 ई. में जिनकुशलसूरि सांचोर आए, नागदा (अद्भुतजी, 13वीं शताब्दी में विशाल कीर्ति के शिष्यय मदनकीर्ति ने नागद्रह में पार्श्वनाथ की वन्दना की) आघाट (उदयपुर के पास, यशोभद्रसूरि 972 ई में यहीं दिवंगत हुए) नागौर (नागपुरा, नाडार, नागपट्टन, अहिपुर, भुजंगनगरकई जैन मंदिर थे, 860 में एक जैन मंदिर की स्थापना श्रेष्ठि नारायण द्वारा हुई, धनदेव ने नेमिनाथ मंदिर बनवाया और स्थापना जिनवल्लभसूरि द्वारा हुई, ओसवंशी पेथड़शाह ने 13वीं शताब्दी में एक जैन मंदिर बनवायाथा,101467 ई में आदित्यनाग गोत्र के श्रीवन्त और शिवरत ने उपकेशगच्छ के कक्कसूरि के द्वारा शीतलनाथ की प्रतिमा का स्थापना समारोह करवाया," उपकेशगच्छ के 1. अर्बुदाचल का सांस्कृतिक वैभव, पृ88 2. मध्यकाल में राजस्थान में जैनधर्म, पृ 191 3. गायकवाड़ ओरियण्टल सिरीज, पृ76, पृ 156 4. खरतरगच्छ वृहद गुर्णावली, पृ68 5. Epigraphica India, Page 26, Page 73 6. मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म, 1 204 7. Progress Report of Achaeotigical Survey, Western Circle, Page 35 8. खरतरगच्छ वृहद गुर्वावली, पृ80 9. जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास, पृ233 10. वही, पृ405 11. जैन लेख संग्रह (नाहर) क्रमांक 1274 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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