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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 428 783-84 ई में प्रतिहार वत्सराज के शासनकाल में निर्मित ओसिया का जैनमंदिर इस काल के स्थापत्य का सम्पूर्ण प्रतीक है।' जैन स्थापत्य की दृष्टि से 11वीं से 13वीं शताब्दी के काल को जैन स्थापत्य का स्वर्णकाल माना जा सकता है। जैन धर्मावलम्बियों में ओसवंश के श्रेष्ठियों, व्यापारियों आदि ने धर्म की प्रभावना के लिये प्रोत्साहन दिया। जैन धर्मावलम्बियों ने चालुक्य निर्माण शैली को अपनाया। इसके अनुसार एक गर्भगृह, वक्रभाग युक्त एक गूढ मण्डप, छ या नौ चौकियों वाला एक स्तम्भ युक्त मुख मण्डप, सामने एक नृत्य मण्डप । ये सब चतुष्कोण में होते हैं। जीरावला, वरमाण, छिंडवाड़ा, नितोड़ा, कालंद्री, गोहली आदि के मंदिर बावन जिनालय पद्धति के हैं। इसकी प्रथम पद्धति में मूलमंदिर के चारों ओर मुख्यद्वार को छोड़कर 51 देवकुलिकाएं होती है, सामने स्तम्भों पर टिका एक बरामदा होता है। दूसरी पद्धति में मुख्य मंदिर के पीछे और गर्भगृह के दोनों पार्यों में अन्तरंग मंदिर और उसके सामने टिका हुआ गुम्बद होता है। इन गुम्बदों को मिलाते हए बरामदों के भीतर 48 देवकल प्रकोष्ठ चारों ओर होते हैं। सिरोही के चौमुखा मंदिर, अजितनाथ मंदिर, आदीश्वर मंदिर और देलवाड़ा के मन्दिरों की यही शैली श्वेताम्बर जैन मंदिरों में देलवाड़ा आबू का जैन मंदिर (वि.सं. 1088) लूणवसति का मन्दिर (1287- नेमिनाथ की मूर्ति की प्रतिष्ठा), अचलगढ़ के मंदिर (आदिनाथ भगवान का चौक्षुरवा मंदिर), भगवान ऋषभदेव का मंदिर (1721), दरवाजे के पास कुथुनाथ का मंदिर (सं 1527) है। पिंडवाडा में बावन जिनालय वाले मंदिर में कायोत्सर्ग की जिनमूर्तियां है, जिनमें प्राचीन खरोष्ठी लिपि का लेख वि.सं. 744 का है। मारवाड़ के बड़ी पंचतीर्थी के मंदिर राणकपुर, मुंछाला, महावीरजी, नारलोई, नाडोल और वरकाणा में है। सादड़ी से 6 मील दूर कपूर में 1444 स्तम्भों पर आश्रित मंदिर में पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग की मुद्रा है। नारलोई के 3 मंदिरों में आदीश्वर भगवान का 1000 पुराना मंदिर स्थापत्यकला की दृष्टि से श्रेष्ठ है । नाडौल तीर्थ में कलात्मक और विशाल पद्मप्रभुजी का मंदिर है। वरकाणा पार्श्वनाथ मंदिर वि.सं. 1211 के पूर्व का है। राता महावीरजी (जवाई बांध से 14 मील पूर्व) में महावीर स्वामी की लाल रंग की मूर्ति है। कोरंटा तीर्थ एरनपुरा छावनी से 6 मील पर भगवान महावीर का मंदिर है। सिरोही में 18 जैन मंदिर है। 15 मन्दिर एक ही मोहल्ले में है। जालोर जिले सुवर्गगिरि तीर्थ से भगवान महावीर का गगनचुम्बी मंदिर है। नाकौड़ तीर्थ में 12 से 17वीं शताब्दी की मूर्तियां है। कापरड़ातीर्थ की स्थापना वि.सं. 1678 में जैतारण निवासी भाणजी भण्डारी ने की। घांघाणी तीर्थ 400 पुराना माना जाता है। नागौर में 1515 का शांतिनाथ भगवान का प्राचीन मंदिर है। जैसलमेर की पंचतीर्थी में- जैसलमेर, अमरसागर, लोडवा, पोकरण और ब्रह्मसागर है। बीकानेर में 30 जैन मंदिर है। जोधपुर का जूनी मण्डी का भगवान महावीर का मंदिर वि.सं. 1800 का है। मेवाड़ में करीब 350 मंदिर है। आहाड़ तीर्थ में 1000 वर्ष पुराने मंदिर है। श्री केसरिया में प्राचीनतम 1. मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म, पृ 307 2. वही, पृ310 3. Propressive Report of Archealogical Survey, Western Circle, Page 173. For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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