SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 417
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 388 पुत्र होगा, परन्तु सोलह वर्ष तक वह उत्तर दिशा में न जाय और सूर्यकुण्ड में नहीं नहाये, राजा ने तथास्तु कहा। ब्राह्मण आशीर्वाद देकर विदा हुए, उस राजाके चौबीस रानियां थी, उनमें चम्पावती रानी के पुत्र हुआ, तब राजा ने बड़ा आनन्द मनाया और पुत्र का नाम सुजानकुवंर रक्खा, इस प्रकार आनन्द से दिन बीते। 14 वर्ष की उम्र में कुमार को एक जैन ने अपनी शिक्षा से शंकर मत के विरुद्ध कर दिया, जिसके कारण वह ब्राह्मणों से द्रोह करने लगा, तीनों दिशाओं में घूमकर उसने ब्राह्मणों को दुख दिया। उनके यज्ञोपवीत तोड़े गये, यज्ञ योग बन्द हो गये, राजा के भय से उत्तर दिशा को नहीं जाता था, पर प्रारब्ध वश उत्तर में ब्राह्मणों का यज्ञ पूजन सुनकर वहाँ चला ही गया और सूर्यकुण्ड पर जाकर पाराशर गौतम आदि ऋषियों को यज्ञ करता देखकर बड़ा क्रोधकर कहा कि इन ब्राह्मणों को पकड़ो मारो और यज्ञ सामग्री नष्ट कर दी, ब्राह्मणों ने यह वचन सुन राक्षस जान शाप दिया कि तुम सब जड़बुद्धि पाषाणवत हो जाओ, वे तत्काल ऐसे हो गये, तब राजा और नगरवासी बड़े दुखी हुए, राजा ने तो अपने प्राण त्याग दिये, सोलह रानी राजा के साथ सती हो गई, शेष उमराव आदि की लिएं ब्राह्मणों की शरण हुई, उन्होंने धर्मोपदेश देकर उन्हें शांत किया और सब को शंकर की तपस्या करने को कहा, उन स्त्रियों ने शंकर की तपस्या की, जिसके कारण शिवपार्वती ने उनको दर्शन दे वर मांगने को कहा, तबरानियों ने कुमार और उनके साथियों को चैतन्य किया और वे सब चैतन्य हो शिवजी को प्रणाम करने लगे। शंकर ने कहा तुमने क्षत्रिय होकर स्वधर्म त्यागन किया, इस कारण तुम क्षत्रिय न होकर वैश्य पद के अधिकारी होंगे।'' यह कपोल कल्पित कथा है किन्तु इससे यह ध्वनित होता है कि क्षत्रियों से माहेश्वरी परिवर्तित हुए। इस कथा के अनुसार 72 सामन्त खण्डेला से डीडवाना आ गये और बहत्तर खांप के डीडू माहेश्वरी कहलाए। यह 72 गोत्र हैंसोनी, सोमानी, जाखेटा, सौढानी, हुरकट, न्यातिहेड़ा, करव्वा, काकाणी, मालू, सारडा, कहाल्या, गिलंग, जाजू, बाहेती, विदारा, विहाणी, बजाजू, कलभी, कासट, कचोल्या, कल्हाणी, झंवर, काबरा, डाड, डागा, गटाणी, राठि, विड्हाला, दरक, तोसणीवाल, अजमेरा, भण्डारी, छपरवाल, भटइं, भूतडावंग, अहत, इन्द्रणी, मुरांग्या, भंसाली, लढा, मालपानी, सिंकची, लाहौटी, गदैया, गागरानी, खटव्यंग, लखौटा, असाता, चेचाणी, मुडधन्या, गूधड़ा, चौख, बलदवा, बालदो, बूच ब्रांगड, 1.जातिभास्कर, पृ276-277 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy