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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 384 'भागवतपुराण' के अनुसार नोदिष्ट का पुत्र नामाग नाभांग वैश्य कन्या से विवाह करके वैश्यता को प्राप्त हुआ।' 'हरिवंशपुराण' के अनुसार नाभागारिष्ट के दो पुत्र वैश्य ब्राह्मण भाव को प्राप्त हुए। www.kobatirth.org महाभारत के अनुशासन पर्व में महादेवजी पार्वती से कहते हैं, जो ब्राह्मण ब्राह्मणत्व प्राप्त कर क्षत्रिय धर्म में जीविका निर्वाह करते हैं, वे ब्राह्मणत्व से भ्रष्ट होकर क्षत्रिय योनि में जन्म ग्रहण करते हैं और जो बुद्धिहीन ब्राह्मण लोभ मोह के कारण वैश्यकर्म को ग्रहण करता है, "वह वैश्यत्व को प्राप्त कर परजन्म में वैश्य ही हो जाता है। इसी प्रकार वैश्य शूद्र हो जाता है। उसी प्रकार शूद्र भी श्रेष्ठ कर्म करते करते ब्राह्मणत्व को प्राप्त हो जाता है। ब्राह्मण सनातनधर्मानुसार ब्राह्मण जन्म सबसे उत्कृष्ट है। अत्रि ऋषि के अनुसार ब्राह्मणी में ब्राह्मण से उत्पन्न ब्राह्मण कहाता है, किन्तु संस्कारों से द्विज होता है, विद्या से विप्र होता है और तीनों वेदों के ज्ञान से श्रोत्रिय कहलाता है महाभाष्यकार के अनुसार, तप, शास्त्र और योनि तीन ब्राह्मण के कारक हैं । तपः श्रुतं च योनिश्चेत्येतद्वा ब्राह्मण कारकम् । श्रुति स्मृति में कहा गया है कि सब जगह देव के अधीन है, देवता मंत्रों के अधीन और मंत्र ब्राह्मणों के अधीन है इसलिये ब्राह्मण देवता है। जन्मना ब्राह्मणी ज्ञेव: संस्कारौ द्वेर्ज उच्यते । विद्यति विप्रत्वं श्रोत्रिय स्त्रिभिरवे च ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'मनुस्मृति' के अनुसार सातवीं पीढ़ी में माता को दोष दूर हो जाता है और स्पष्ट ब्राह्मणत्व प्रकट होता है। इस सात के बीच की कन्या संकर जाति को उत्पन्न करती है। 1. भागवतपुराण 9/2/23 ब्राह्मणोत्पत्ति मार्त्तण्ड में बहुत सी ब्राह्मण जातियां लिखी है किन्तु विन्ध्याचल के उत्तर में पाँच ब्राह्मण जातियां - सारस्वत, कान्यकुब्ज, गौड़, उत्कल और मैथिल पाई जाती है। 2. हरिवंशपुराण 3/3/9 देवाधीनं जगत्सर्वं मन्त्राधीनाश्च देवताः । ते मंत्रा ब्राह्मणाधीनास्तस्माद्वहन देवताः ॥ सारस्वता: कान्यकुब्जा गौड़ा उत्कल मैथिलाः । पंच गौड़ा इति ख्याता विंध्यस्योत्तर वासिनः ॥ कुल दस प्रकार के ब्राह्मणों में सारस्वत पंजाब देश में प्रसिद्ध है । 'वायुपुराण' के नाभागो दिष्ट पुत्रोऽन्यः कर्मणा वैश्यता गतः । 3. मनुस्मृति 10/64 नाभागारिष्ट पुत्रौ द्वौ वैश्यो ब्राह्मणताः गतौ । शूद्रायां ब्राह्मणाज्जातः श्रेयसा चैत्प्रजायते । अश्रेया श्रेयसी जातिं गच्छ For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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