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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 251 से ही सम्बन्धित है। विभिन्न गच्छों के प्राचीनतम शिलालेखों में वि.स. 1011 का शिलालेख सबसे प्राचीन है। श्री पूर्णचंद जी नाहर के मतानुसार “हिन्दुओं से जैनी बनाने का कार्य अबाध होता रहा और ओसवंश बढता गया। शिलालेखों से जहाँ तक मेरा इस विषय में ज्ञान है, विक्रम की 11वीं शताब्दी के पूर्व किसी लेख में आचार्य रत्नप्रभसूरि के नाम के साथ उपकेशगच्छ का नाम नहीं ___ इसके अतिरिक्त 'कल्पसूत्र की स्थिरावली' आदि प्राचीनग्रंथों में उपकेशगच्छ का उल्लेख नहीं है। प्रथम पार्श्वनाथ स्वामी की पट्ट परम्परा का नाम उपकेशगच्छ भी नहीं था। डॉ. भण्डारकर के अनुसार ओसिया बसने के कुछ वर्ष बाद रत्नप्रभ नाम के जनसाधु (यति) वहाँ आए जो हेमाचार्य के शिष्य थे। वह समय नवीं शताब्दी का था। ___ अजारी ग्राम (सिरोही) से प्राप्त वि.स. 1194 का एक शिलालेख है, जो उपकेशगच्छ का प्राचीनतम लेख माना जाता है, जबकि अन्याय गच्छों के सैकड़ों लेख उस समय के पूर्व के मिलते हैं। नमूने के रूप में कुछ गच्छों के एक एक, दो दो शिलालेख प्रस्तुत है, जो उपकेशगच्छ के प्राचीनतम शिलालेख (1194) से अधिक प्राचीन है। 'विक्रम की 12वीं शताब्दी के पूर्व किसी भी शिलालेख, ताम्रपत्र या ग्रंथ में उपकेशगच्छ का नामोल्लेख न मिलना, यह सिद्ध करता है कि उपकेशगच्छ इतना प्राचीन नहीं, जितना पट्टावलीकार ने बताया है। उपकेशगच्छ के अब तक जितने शिलालेख मिले हैं, उनमें अधिकतर 13वीं से 16वीं शताब्दी के बीच के ही हैं। इससे पता चलता है कि इस गच्छ की लोकप्रियता मेवाड़, मारवाड़, सिरोही आदि स्थानों में 13वीं से 16वीं शताब्दी के बीच ही रही। यह भी देखना आवश्यक है कि ओसियां में प्रतिबोध देकर नूतन जैन बनाने वाले आचार्य रत्नप्रभ सूरि कौन थे ? वे किस गच्छ के थे ? 'उपकेशगच्छ पट्टावली' के अनुसार उपकेशगच्छ रत्नप्रभसूरि नाम के छह आचार्य हुए और इस गच्छ के छठे या अंतिम रत्नप्रभसूरि होने का समय पट्टावलीकार ने पाचवीं शताब्दी माना है। बीकानेर जैन लेख संग्रह के अनुसार वि.स. 1420 और वि.स. 1462' के अभिलेखों से सिद्ध है कि उपकेशगच्छ में 15वीं शताब्दी में रत्नप्रभसूरि नाम के आचार्य भी 1. पूर्णचंद नाहर, जैन लेख संग्रह, भाग 3 की प्रस्तावना 2. वही, प्रस्तावना 3. आर्केलोजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, 1908-09, पृष्ठ 9 4. ओसवाल वंश, अनुसंधान के आलोक में, पृ 20 5. वही, पृ21 6. बीकानेर जैन लेख संग्रह, लेखांक 444 7. वही, लेखांक 603 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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