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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 234 था, किन्तु भाटों के अनुसार उप्पलदेव परमार था। श्री सुखसम्पतराजभण्डारी, 'पट्टावली समुच्चय' के लेखक मुनि दर्शनविजय, तपागच्छ पट्टावली, मुहणौत नैणसी री ख्यात्, इतिहासकार श्री अगरचंद भंवरलाल नाहटा, श्री गौरीशंकर हीराचंद ओझा, श्री जगदीशसिंह गहलोत, श्री पूर्णचंद्र नाहर और डॉ. डी.आर. भण्डारकर आदि सभी उप्पलदेव को परमार मानते हैं।' 'उपकेशगच्छ पट्टावली' में उपलदेव को वि.सं 400 वर्ष पूर्व हुआ मानते हैं और भाटों के अनुसार विक्रम संवत् 222 में । तीसरा मत इतिहासकारों का है, जो इतिहास के तथ्य तथा परमारवंश के उपलब्ध शिलालेखों पर आधारित है । मारवाड़ के परमारों की श्रृंखलाबद्ध वंशावलियां उप्पलदेव से मिलती है। परमारों का मूल स्थान आबू था। यहाँ से ही ये लोग अलग अलग फैले । गुजरात, मारवाड़, आबू, भीनमाल आदि कई प्रदेशों पर परमारों का अधिकार रहा । इन परमारों के कई शिलालेख जोधपुर संभाग के जालोर भाडूंद, किराडू, दियाणा और आबू में मिले हैं। परमार कृष्णराज के संवत् 1113 और 1123 के दो शिलालेखों से ज्ञात होता है कि कृष्णराज दो पुत्र थे। संवत् 1098 के बसन्तगढ़ और संवत् 1102 के भाडूंद के शिलालेखों से ज्ञात होता है कि पूर्णपाल अपने पिता की गद्दी पर बैठा और कृष्णराज भीनमाल का राजा था। __परमारों के सम्बन्ध में दियाणा ग्राम के जैन मंदिर में वि.सं 1024 का सबसे पुराना अभिलेख मिला है। इसके अनुसार कृष्णराज के शासन में किसी वर्द्धमान द्वारा वीर प्रभु की मूर्ति प्रतिष्ठित करने का विवरण है। यह शिलालेख कृष्णराज परमार का समय निश्चित करने में सहायक सिद्ध हुआ है। यह कृष्णराज आबू के परमार उप्पलदेव का पौत्र था। इस तरह उप्पलदेव और कृष्णराज के बीच दो पीढ़ी होती है । इस दो पीढ़ी का समय सामान्यत: 50 वर्ष का होता है। इस प्रकार उप्पलदेव का समय दसवीं शताब्दी के आस पास का माना जा सकता है।' 'ओसिया के जैनमंदिर के संवत् 1032 के अभिलेख से ज्ञात होता है कि उस समय वहाँ प्रतिहारों का राज्य था। हम परमार उप्पलदेव का समय 10वीं शताब्दी के आसपास मान चुके हैं। परमार उप्पलदेव ने मण्डोर के प्रतिहारों के यहाँ शरण ली, यह बात सभी मत वाले स्वीकार करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि उप्पलदेव ने दसवीं शताब्दी के आसपास आकर शरण ली और ओसिया बसाई, क्योंकि ग्यारहवीं शताब्दी में तो ओसिया में प्रतिहारों का राज्य था।' कर्नल टाड के अनुसार नवीं शताब्दी के पूर्व परमारों का कोई बड़ा राज्य नहीं था। ओझा जी के अनुसार धरणीशाह के पोते उप्पलदेव को मारवाड़ के परिहारों ने दसवीं शताब्दी में शरण दी। “राजस्थान की जातियों की खोज' के लेखक के अनुसार ओसिया में वि.सं 885 में उप्पलदेव परमार का राज्य था। डॉ. डी.आर. भण्डारकर के अनुसार परमार उप्पलदेव को 1. ओसवाल वंश : अनुसंधान के आलोक में, पृ4 2. मुनि जयन्तविजय, अर्बुदचाल प्रदक्षिणा जैन लेख संदोह 3. वही 4. ओसवाल वंश, अनुसंधान के आलोक में, पृ6 5. वही, पृ7 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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