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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 189 'उपकेशगच्छ पट्टावली' के अनुसार "क्रमेण द्वादशांग चतुर्दशपूर्वी बभूव गुरुणा स्वपदे स्थापित: श्रीमद वीर जिनेश्वरात् द्वि पंचाशत वर्षे आचार्य पदे स्थापित: पंचाशत साधुमिः सहधरां विचरति।" तदनन्तर आचार्य रत्नप्रभसूरि शासनतंत्र सुचारू रूप से चलते हुए भूतल पर धर्मप्रचार करते हुए विहार करने लगे। तीर्थाधिराज शत्रुजय तीर्थ से अर्बुदकाल पधारे और अधिष्टात्री चक्रेश्वरी देवी की प्रार्थना पर मरुभूमि की ओर प्रयाण किया। आप अनेक कठिनाइयों और बाधाओं को झेलते हुए उपकेशपुर नगर पहुँच गये। श्रीमाल नगर के राजा भीमसेन के दो पुत्रों-पुंज और सुरसुन्दर में पुंज का पुत्र उत्पलदेव था। एक समय का जिक्र है उत्पलदेवकुमार आपसी ताना के कारण अपमानित हो नगर से निकल गया। उसकी इच्छा एक नया नगर बसा कर स्वयं राज करने की थी। इधर तो राजकुमार अपमानित होकर निकल रहा था, उधर प्रधान का पुत्र उहड़ कुमार भी संयोगवश अपमानित होकर राजपुत्र के साथ हो गया। उत्पलदेव ने ढेलीपुर (दिल्ली) नगर के राजा साधुसे आज्ञा लेकर मण्डोर के आगे पानी की सुविधा देखकर एक नगर का नाम उस वाली भूमि होने से 'उएस' रख दिया। स्वल्प समय में ही यह नगर 9 योजना लम्बा और 12 योजना लम्बा बस गया। राजा भीमसेन से दुखी जनता इस नूतन नगर में आ बसी। यहाँ इस नूतन नगर में चामुण्डा देवी की स्थापना कर दी। कई प्राचीन वंशावलियों में इस नूतन नगरी के सम्बन्ध में कवित्त मिलते हैं। गाड़ी सहसगुण तीस, यता रथ सहस्र ग्यारे, अट्ठारह सहस्र असवार पाला पावक नहीं कोई पारे। उट्ठी सहस अट्ठार, तीस हस्ती मद जरता, दस सहस्र विप्र भिन्नमाल से मणिधर साथे मांडिया, एव उपलदे मंत्री ऊहड़, घर बार साथे छाडिया। इस नगरी में व्यापारियों के साथ ब्राह्मण भी आ गये। दो दो व्यापारी एक एक ब्राह्मण का निर्वाह भी कर देते थे और नूतन नगर की अधिष्ठात्री चामुण्डा देवी की स्थापना कर दी। आचार्य रत्नप्रभसूरि उपकेशपुर पधार तो गये पर किसी एक भी आदमी ने उनका स्वागत सत्कार नहीं किया, इतना ही क्यों किसी ने ठहरने के लिये स्थान तक भी नहीं बतलाया। इस हालत में आचार्य श्री ने साधुओं के साथ लुणाद्रि पहाड़ी पर जाकर ध्यान लगा दिया। नगर के 1. उपकेशगच्छ पट्टावली, पृ 184 2. उपकेशगच्छ चरित्र द्वाभ्या वणिग्भ्यां तत्रेक विप्रवृति: प्रकल्पिता पाद्रदेवी च चामुंडा तत्स्थ लोक कुलेश्वरी: पिता पुत्रश्च यत्रौभौ वणिजौ व्यवहारिणौ षण्मासी तस्थुषौ जातु मिलितौ न मिथ क्वचित । For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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