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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 116 तप-अनुष्ठान ही शाश्वत अष्ट पुष्प है। उस समय चार संघपति- नागजी, दलीचंद, मोतीचंद और शंभुजी पूरी तरह लोंकाशाह से प्रभावित थे। उस समय लोंकाशाह ने अपने गच्छ का नाम लोंकागच्छ रखा। ___ जैसलमेर भण्डार में उपलब्ध ताड़पत्रों के आधार पर लोंकाशाह ने दीक्षा ग्रहण की। इसमें कहा गया है "समत पनरेने अड़तीसरी साल मिगसर सुद पाचम ने दिन अहमदाबाद वाला लूंकाजी दफ्तरी जिन दीक्षा ली। ज्ञान रिखब जीना चेलासुमति सेन जीरे पासलूका जी पाँच चेला लूंका ना हुआ।लूंका नाम थापियो, लूंका जी दीक्षा लीनी तिणसे परिवार घणो बधियो । लूका जी गुजरात, मारवाड़ और दिल्ली तक पधारिया और दिल्ली माहे पातसाहे आगम चर्चा थई। श्रीपूज्य जी से चर्चा हुई, चर्चा करीने घणों मिथ्यात्व हाराइ ने घणा श्रावक ने प्रतिबोध दीवो। ऐसी शाख सूरत ना सेठ जी कल्याण जीभंसालाना भण्डार मा संस्कृत मा छे। तेया लूंका जीनी दीक्षानी हकीकत छै तथा ज्ञानसागर जतीनी जोड़ को ग्रंथ नाटक ते मां पण लूंका जीए दीक्षा लीधा ने लिरव्यु छे।" _लोकाशाह के देहान्त के बारे में भी विवाद है। यतिवर भानुचंदजी (1578) के अनुसार इनका स्वर्गवास संवत् 1532 में हुआ, 'प्रभुवीर पट्टावली के अनुसार' वि.स. 1532 में, लोकायत केशव जी के अनुसार संवत् 1533 में, वीर वंशावली के अनुसार वि.स. 1535 हुआ। लोकाशाह ने माना कि तप के बिना भी शास्त्र अभ्यास किया जा सकता है। जिन प्रतिमा की पूजा आगमों में नहीं है; साधु को दण्ड नहीं, पुस्तकें रखनी चाहिये; बिना उपवास के पौषध किया जा सकता है; उपवास कभी भी किया जा सकता है। जैनमत के इतिहास में लोकाशाह की देन अभूतपूर्व रही। यही समय था जब यूरोप मं ईसाईमत में सुधारवाद का बोलबाला था। धर्मप्राण लोंकाशाह ने श्वेताम्बर परम्परा में सुधार और क्रांति के द्वारा युगान्तर उपस्थित किया। लोकाशाह को आडम्बर, जड़ उपासना, जड़ क्रिया से घृणा थी। 'हार्ट ऑफजेनिज्म' के लेखक ने कहा कि 1452 ई में लोकाशाह सम्प्रदाय के साथ ही स्थानकवासी परम्परा प्रारम्भ हुई। यही वह समय था जब यूरोप में लूथर का शुद्धतावादी आंदोलन शुरू हुआ था। "लोकाशाह किसी सिद्धान्त, मान्यता, परम्परा अपना विश्वास के विरोधी नहीं और न ही किसी मत, सम्प्रदाय, धर्म अथवा मजहब के अनुरागी। वे सदैव तटस्थ रहकर सत्य का शोधन करते। उनकी सत्यान्वेषीवृत्ति को लोकभाषा में ढूंढिया वृत्ति कहते हैं, इसलिये स्थानकवासी सम्प्रदाय को ढूंढिया सम्प्रदाय कहने लगे।' 1. Heart of Jainism. About A.D. 1452 the Lonka Shah arise was followed by Sthanakwasi Sect, dates of which coincide strikingly with the Lutheren puritant in Europe. 2. मुनिसुशील कुमार, जैनधर्म का इतिहास, पृ 309 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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