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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 103 कुछ गच्छ और उनके अभिलेख निम्नानुसार हैं। वृहद गच्छ गच्छ के 1046 ई. के अभिलेख सिरोही राज्य में कोटरा ग्राम में है।, 1158 ई. का अभिलेख नाडोल (मारवाड़) में भी पाया गया है। इस गच्छ का प्राचीनतम अभिलेख 954 ई का सिरोही के दयाणा चैत्य का है जिसमें वृहदगच्छ के परमानन्द सूरि के शिष्य यक्षदेव सूरि का उल्लेख है। उपकेशगच्छ इसकी उत्पत्ति मारवाड़ के आसिया या उपकेशनगर से मानी जाती है। इस गच्छ के देवगुप्त सूरि ने सिरोही में लोटाणा तीर्थ में धातु पंचतीर्थी की प्रतिष्ठा 954 ई. में प्राग्वट शाह सिंह देव के पुत्र नल द्वारा कराई थी। इसे प्राचीनतम गच्छ माना जाता है, किन्तु प्रमाण के अभाव कारण प्रामाणिकता पर संदेह प्रकट किया गया है। संडेरक गच्छ इस गच्छ की उत्पत्ति मारवाड़ में यशोदेव सूरि द्वारा संडेरा में हुई । सांड के विजय के कारण इसका नाम संडेरा रखा गया है। 12वीं शताब्दी में नाडौल में इसका अस्तित्व था । इस गच्छ के शांतिसूरि ने सिरोही राज्य के धराद में 1147 ई. में पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित कराई। मल्लधारी गच्छ इस गच्छ का प्राचीनतम उल्लेख 1157 में घाणेराव में प्रीतिसूरि का उल्लेख उपलब्ध है।' ब्रह्माणगच्छ यह गच्छ सिरोही राज्य में ब्रह्माणक (वरमाणतीर्थ) से उत्पन्न हुआ। इसका प्राचीनतम उल्लेख प्रद्युम्न सूरि का 1160 में धरांद में मिलता है। इसके अतिरिक्त 1185 में सिरोही के वरमाण तीर्थ में और 1166 ई का सिरोही के अजितनाथ मंदिर का एक प्रतिमा लेख है। निवृत्ति गच्छ निवृत्ति गच्छ और शेखरसूरि का उल्लेख 1073 ई के लौटाणा तीर्थ से प्राप्त होता 1. प्राचीन लेखसंग्रह, भाग 1, क्र. 3 2. जैन लेख संग्रह (नाहर), क्रमांक 833, 834 3. श्री जिन प्रतिमा लेख संग्रह, क्रमांक 331 4. वही, क्रमांक 321 5. प्राचीन लेखसंग्रह, क्र 5 और 23 6. श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, क्र. 173 7. वही, क्रमांक 324 8. वही, क्रमांक 200 9. वही, क्रमांक 328 10. वही, क्रमांक 32 11. वही, क्रमांक 318 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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