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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 100 100 श्रीमाली कुटुम्बों को जैनधर्म की दीक्षा दी। चंद्रगच्छीय वर्द्धमान सूरि (वि.स. 1045) ने हरिभद्रसूरि कृत उपदेश पद, उपमिति भवप्रपंच' 'कथानांसम्मुच्चय' और 'उपदेशमाला वृहदवृत्ति नाम की टीकाएं लिखी। जिनचंद्रभ्रभसूरि (वि.स. 1073) ने 'नवतत्व प्रकाण' की रचना की। सम्प्रदाय भेद (गच्छभेद)- (1000 ई से लोंकाशाह तक) जिनेश्वरसूरि ने पाटन में चैत्यावासी साधुओं को शास्त्रार्थ में पराजित कर रवरतर उपाधि प्राप्त की, उसी दिन से इस गच्छ का नाम खरतरगच्छ पड़ा। इन्होंने हरिभद्र के अष्टमों पर (वि.स. 1080) में टीका लिखी। इन्होंने सहोदर और सहदीक्षित बुद्धिसागर जी ने 7000 श्लोकों के पंचग्रंथी व्याकरण की रचना की। बुद्धिसागर सूरि जैन समाज के आय वैयाकरण कहे जा सकते हैं। जिनेश्वरसूरि के शिष्य धनेश्वरसूरि (वि.सं. 1095) ने सुरसुन्दरी कथा प्राकृत' में लिखी। इनके ही समय में आबू में विमलवसति नामक प्रसिद्ध कलात्मक मंदिर का निर्माण हुआ। अभयदेवसूरि जैनमत के शास्त्रों के सफल टीकाकार माने जाते हैं। ये अर्हत संस्कृति के महान् एवं दिव्य नक्षत्र थे। अभयदेव सूरि के शिष्य चंद्रप्रभ महत्तर वि.स. 1137 के लगभग प्राकृत भाषा में 'विजयचंद्र चरित' नामक ग्रंथ लिखा। अभयदेव सूरि के ही शिष्य वर्द्धमान सूरि ने प्राकृत में 'मनोरमा चरित' की रचना की। इसके अतिरिक्त वि.स. 1160 में प्राकृत भाषा में 'आदिनाथ चरितं' और वि.स. 1172 मेंत्ति धर्मरत्न करण्ड वृत्ति, की रचना की। हर्षपुरीगच्छीय मल्लधारी अभयदेवसूरि ओजस्वी वक्ता थे। इन्हीं के उपदेशों से अनेक अजैनों ने जैनमत अंगीकार किया। जिनवल्लभसूरि ने चैत्यावास का त्यागकर नवांगवृत्तिकार अभयदेव सूरि ने पुन: दीक्षा ग्रहण की और वाग्नड (वागड़) की जनता को प्रतिबोधित किया। ये प्रसिद्ध आगमज्ञ और प्रकाण्ड विद्वान थे। जिनवल्लभसूरि के पट्टधर शिष्य और खरतरगच्छीय महान् प्रभावक पुरुष थे, जिन्होंने सिद्धि से “दादा' नाम से प्रसिद्धि प्राप्त की। इन्होंने अनेक राजपूतों को प्रबोध देकर ओसवंश और जैनधर्म के प्रसार में योग दिया। जिनदत्तसूरि जिनवल्लभसूरि के शिष्य रामदेव गणि ने (वि.स. 1173) 'वैराग्य शतक' के अतिरिक्त ऋषभ और नेमिनाथ पर महाकाव्य लिखे। चंद्रगच्छीय विजय सिंह सूरि के शिष्य वीराचार्य (वि.स. 1160) ने नागौर क्षेत्र में जैनधर्म की अच्छी प्रभावना की। नवांगवृत्तिकार अभयदेव सूरि के प्रशिष्य और प्रसन्नचंद सूरि के शिष्य देवचंद्र सूरि ने प्राकृत में आराधनाशास्त्र', 'वीर चरित्र', 'कथारत्नकोश' और 'पार्श्वनाथ चरित' (वि.स. 1165) की रचना की। चंद्रगच्छीय ईश्वरगणी के शिष्य वीरगणि ने वि.स. 116 9 में 'पिण्ड नियुक्ति' पर टीका लिखी। वि.स. 1160 में प्रख्यात हेमचंद्र सूरि के गुरु देवचंद सूरि ने प्राकृत भाषा में शांतिनाथ चरित' की रचना की। _वृहदगच्छ के मुनिचंद्रसूरि ने बहुत से ग्रंथों पर वृत्तियां और चूर्णियां लिखने का महान कार्य किया। इनका देहान्त वि.स. 1178 में हुआ। मल्लधारी हेमचंद्रसूरि ने वि.स. 1193 'मुनिसुव्रत चरित' और प्राकृत में संग्रहणी तत्व' नामक ग्रंथ लिखा। चन्द्रगच्छीय श्री चंद्रसूरि ने वि.स. 1214 में प्राकृत में 12 हजार श्लोकों का ‘सनतकुमार चरित' लिखा। श्रीचन्द्रसूरि के For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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