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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 89 स्थूलिभद्र का स्वर्गवास वीर संवत् 215 हुआ और फिर आर्य महागिरि की दीक्षा हुई। वीर संवत् 245 में आचार्य महागिरि का स्वर्गवास हुआ और आचार्य सुहस्ति को आचार्य बनाया गया। उस समय कुणाल का पुत्र सम्प्राति मगध का शासक था। सम्प्राति का जन्म ई.पू. 257, वीर निर्वाण संवत् 270 पौष मास में हुआ था। सम्प्राति का स्वर्गवास ई.पू. 203 और वीर निर्वाण संवत् 232 में हुआ। कल्हण के 'राजतरंगिणी' में स्पष्ट लिखा है कि प्रारम्भ में अशोक जैन था और उसने जैन धर्म का प्रचार काश्मीर में किया था। अशोक के धर्मचक्र में 24 आरे 24 तीर्थंकारों को सूचित करते हैं। राजा वल्लिधे नामक कन्नड़ ग्रंथ में अशोक को जैन बतलाया है। अशोक के पौत्र सम्प्राति को आचार्य सुहस्ती ने जैन धर्म की दीक्षा दी। उसने जैन धर्म और अर्हत संस्कृति का ब्रह्मदेश, आसाम, तिब्बत, अफगानिस्तान, तुर्की और अरब स्थान में प्रचार किया। उस समय देश विदेश में जैन धर्म की वैजयन्ती लहरा रही थी। दसरी सदी के कलिंग का शासक मिक्खराय खारवेल जैनधर्म का अनन्य उपासक था। खारवेल सम्भवत: पार्श्वनाथ परम्परा के आचार्यों के अनुयायी थे। खारवेल के ही प्रयत्नों से पाटलिपुत्र में आगम वाचना हुई, जिसमें कई आचार्य- नक्षत्राचार्य, देवसेनाचार्य, उमास्वामी, श्यामाचार्य आदि एकत्रित हुए। उमास्वामी के तत्वार्थ सूत्र' को हम जैनधर्म की गीता कह सकते हैं। 'तत्वार्थ सूत्र' जैनदर्शन का निचोड़ है। महावीर के 400 वर्ष पश्चात् आगमयुग समाप्त हो चुका था और इस समय समस्त जैन साहित्य प्रतिस्पर्धियों के प्रहार सुरक्षार्थ आगमों के आधार पर रचा जाने लगा, जिसको युग की आवश्यकता थी। 'कल्पसूत्र स्थिरावली' के अनुसार देवर्द्धि सहस्ती शाखा के आर्य खांडिल्य के शिष्य थे। नंदीसूत्र की स्थिरावली, जिनदास रचित चूर्णि, हरिभद्रीया वृत्ति, मलयगिरीया टीका और मेरुतुंग के अनुसार देवद्धि दृष्यगणि के शिष्य थे और तीसरा पक्ष आर्य लोहित्य का शिष्य बताता है। मुनि श्री कल्याणविजय जी ने सुहस्ती परम्परा को मान्यता दी है। देवद्धि क्षमाश्रवण वीर निर्वाण संवत् 1000 में स्वर्ग सिधारे। अब अनुसंधान से यह पता चला है कि देवर्द्धि क्षमाश्रमण देवर्द्धि दृष्यगणी के शिष्य होने चाहिये। जैन संघ में उस समय 500 आचार्य थे, जिनको क्षमाश्रमणजी ने श्रुतरक्षार्थ एकत्रित किया। समयसुन्दर गणी ने अपने समाचारीशतक' और विनयविजय कृत 'लोकप्रकाश' में इसे 1. कल्हण, राजतरंगिणी, श्लोक 101, 102 यः शांत वृजिनो प्रपत्रो जिन शासनम् । पुष्कलेऽत्र वितस्तात्रौ तस्तार स्तूप मण्डले॥ 2. मुनि सुशील कुमार, जैन धर्म का इतिहास, पृ 132 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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