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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 81 परिस्थितियों के कारण उत्पन्न हुई शिथिलाचारिता को श्वेताम्बर सम्प्रदाय की उत्पत्ति का जनक बतलाते हैं और श्वेताम्बर लेखक जम्बूवासी के पश्चात विच्छिन्न हुए जिनकल्प पुन: संस्थापन करने को दिगम्बर मत की उत्पत्ति का जनकमानते हैं। श्वेताम्बरों के अनुसार जिनकल्प (दिगम्बरत्व की प्रकृति) जम्बूस्वामी तक अविच्छिन्न रूप से चली आती थी। उसके पश्चात् ही उसका विच्छेद हुआ और शिवभूति ने उसे पुन: प्रचलित करके दिगम्बर सम्प्रदाय की सृष्टि की। ___'केम्ब्रिज हिस्ट्री' के अनुसार 'यह समय (भद्रबाहु का दक्षिणागम) जैन संघ के लिये दुर्भाग्यपूर्ण प्रतीत होता है और इसमें कोई सन्देह नहीं कि ईस्वी पूर्व 300 के लगभग संघभेद का उद्गम हुआ, जिसने जैन संघ को श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदायों में विभाजित कर दिया। आर सी मजूमदार के अनुसार “जब भद्रबाहु के अनुयायी मगध से लौटे तो एक बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ। नियमानुसार जैन साधु नग्न रहते थे, किन्तु मगध के जैन साधुओं ने सफेद वस्त्र धारण करना प्रारम्भ कर दिया था। इस प्रकार श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदाय उत्पन्न हुए।"2 पं. विश्वेश्वरनाथ रेऊ के अनुसार, कुछ समय बाद जब अकाल समाप्त हो गया, और कर्नाटक से जैन लोग वापिस लौटे, तब उन्होंने देखा कि मगध के जैन साधु पीछे से निश्चित किये गये धर्मग्रन्थों के अनुसार श्वेत वस्त्र पहनने लगे हैं । इस वस्त्र पहनने वाले जैन साधुश्वेताम्बर और नग्न रहने वाले दिगम्बर कहलाए।' _ 'उत्तराध्ययन' के केशी गौतम संवाद में अचेलता-सचेलता पर प्रकाश डाला गया है। इसमें स्पष्ट कहा है कि महावीर ने अचेलक धर्म का उपदेश दिया है और पार्श्वनाथ ने सान्तरोत्तर धर्म का उपदेश दिया। सान्तरोत्तर का अर्थ है, ऐसे वस्त्र जिन्हें धारण किये जायें, वह धर्म सान्तरोत्तर है। सान्तर+उत्तर का अर्थ है, ओढ़ना, अर्थात् जो आवश्यकता होने पर वस्त्र का उपयोग कर लेता है, नहीं तो पास में रखे रहता है। पार्श्वनाथ के साधु अचेल भी थे और सचेल भी। जब वे वस्त्र का उपयोग नहीं करते थे तो अचेल कहलाते थे, जब वे वस्त्र का उपयोग करते थे तो सचेल कहलाते थे। कुछ पार्श्वपंथियों में शिथिलाचारिता थी। श्वेताम्बर साहित्य के आधार पर यह कहा जा सकता है कि पार्श्वनाथ के धर्म में साधुओं के लिये सान्तरोत्तर वस्त्र की व्यवस्था थी- अर्थात् साधु वस्त्र पास में रखते थे और आवश्यकता के समय उसे ओढ़ लेते थे। वस्त्र की व्यवस्था के विषय में जितनी कड़ी नीति भगवान महावीर ने अपनाई, उतनी पार्श्वनाथ ने नहीं अपनाई। श्वेताम्बर परम्परा में प्रथम और अंतिम तीर्थंकर के लिये अचेल धर्म आवश्यक बतलाया, किन्तु मध्य के बाईस तीर्थंकर के साधुओं के लिये अचेल और सचेल दोनों धर्म 1. Cambridge History of India, Page 147 2. R.C. Majumdar, Ancient India, Part II Page 41 3. पं. विश्वेश्वरनाथ रेऊ, भारत के प्राचीन राजवंश, भाग |, 4431-432 4. उत्तराध्ययन सूत्र, 23 अ अचेलओ अजो धम्मो जो इमोसंतरुत्तरो। देसियो वद्धमाणेणणं पासेण व महामुनी॥. For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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