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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 74 ई. में एक शास्त्रार्थ हुआ। विमलनाथ का प्रसिद्ध और भव्यमंदिर बताता है कि ग्यारहवीं शताब्दी में गुजरात में जैनमत कितना अधिक लोकप्रिय था। सिद्धराज के काल में गुजरात में जैनमत ने एक नया इतिहास रचा, जब उनके दरबार में दिगम्बरों की हार और श्वेताम्बरों की विजय हुई।' इसका उल्लेखएक समकालीन नाटक 'मुद्रिता कुमुदचंद्र' में है। यह शास्त्रार्थ दिगम्बर सन्त कुमुदचंद्र और श्वेताम्बर सन्त देवचन्द्रसूरि (1086-1169 ई) के बीच हुई थी। यह शास्त्रार्थ सिद्धराज के समक्ष 1181 ई. की वैसाख की पूर्णिमा को हुआथा। इसके पश्चात् गुजरात में श्वेताम्बर परम्परा फलीफूली। सिद्धराज ने एक मंदिर का भी निर्माण करवाया। कुमारपाल भी गुजरात में जैनमत का महत्वपूर्ण सहायक और संरक्षक था। कुमारपाल ने कई जैन मंदिर बनवाए। जालोर के शिलालेख से पता चलता है कि कुमारपाल हेमप्रभसूरि के ज्ञान से प्रभावित थे। कुमारपाल के पश्चात् गुजरात में राजकीय संरक्षण के स्थान पर वणिकों का संरक्षण मिला। वस्तुपाल और तेजपाल ने कई जैनमंदिर बनवाए। वस्तुपाल ने गिरनार का मंदिर बनवाया। उदयप्रभसूरि दोनों भाइयों वस्तुपाल और तेजपाल के गुरु थे। वस्तुपाल और तेजपाल के पश्चात् गुजरात में जैनमत में कोई महान् ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं जुड़ा, किन्तु गुजरात में जैनमत पूरी शक्ति से अपनी जड़ें जमा चुका था। दक्षिण भारत में प्रारम्भ से ही दिगम्बर सम्प्रदाय का घर रहा है और वहाँ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के लिये बहुत कम अवकाशरहा। जैनों का दक्षिण भारत में दर्शन, व्याकरण, वास्तुकला, शिल्पकला, साहित्य और चित्रकला की दृष्टि से गौरवपूर्ण अवदान रहा है। जैनों ने तमिल साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है । ईसा की प्रारम्भिक शताब्दी से ही दक्षिण भारत में जैनमत काखूब प्रचार हुआ। अनेक पुरावशेष-शिलालेख, मूर्तियां, मंदिर और साहित्य सामग्री इसके ज्वलंत प्रमाण हैं। 1. Jain Jourmal, April, 1963, Page 213 The next land mark in the history of Jainism in Gujrat was the reign of Sidharaja when the Swetambara doctrine became, so to say the legal Jaina doctrine of Gujrat as the result of a debate held in the court of Sidharaja, where the Digambaras had to acknowledge the defeat. 2. वही, पृ.222 South India was the sole abode of Digambar sect from the beginning and that it afforded little quarter to the followers of Swetambar sect. 3. वही, पृ247 The Jaines made a glorious contribution to the philosophy, Grammer, Architecture, Sculpture, Literature and Painting of South India. For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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