SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (vi) एक दुस्तर अनुसन्धान यात्रा ॥अर्हम्॥ ओसवाल जाति का उद्भव अपने आपमें एक महत्त्वपूर्ण और युगान्तरकारी घटना है । जैनाचार्यों के गौरवशाली कर्तृत्व और प्रभावशाली व्यक्तित्व का उसे एक निदर्शन कहा जा सकता है। क्षत्रिय जैसी मरने-मारने को उद्यत रहने वाली युद्धप्रिय जाति को अहिंसा प्रधान जीवन जीने को उद्यत बना देना किसी चमत्कार से कम नहीं है। आमूलचूल वैचारिक परिवर्तन द्वारा ही ऐसा संस्कारान्तरण संभव हो सकता है। विभिन्न समयों में विभिन्न जैनाचार्यों ने ऐसा किया। उस कालखण्ड में अहिंसा संस्कारों में दीक्षित उस समुदाय का नामकरण 'ओसवाल किया गया। विभिन्न गोत्रों के रूप में उसकी शाखा-प्रशाखाओं के फैलाव ने उसे एक शतशाखी कल्पवृक्ष बना दिया। ओसवाल जाति ने संस्कृति, कला, साहित्य, राजनीति एवं व्यवसाय आदि प्रायः प्रत्येक क्षेत्र में उन्नत शिखरों पर अपने ध्वज गाड़े हैं। अनेक विद्वानों ने ओसवंश के विभिन्न समयों के उन प्रगति-पड़ावों का अध्ययन करने का प्रयास किया है, परन्तु उक्त कार्य बहुत श्रम साध्य और समय साध्य है। जितना जाना गया है उससे अनेक गुण अधिक ज्ञातव्य है। यह एक दुस्तर अनुसंधान-यात्रा है, जो पूर्ण होकर भी पूर्ण नहीं होती। मंजिल पर पहुँचने पर पता चलता है कि आगे और भी मंजिलें हैं। डॉ. महावीरमल लोढा की पुस्तक “जैनमत और ओसवंश" का प्रथम खण्ड है - जैनमत और ओसवंश । प्रस्तुत पुस्तक कोरा इतिहास ही नहीं है, यह जैनमत के परिप्रेक्ष्य में ओसवंश के इतिहास के साथ उसके विकास पर भी प्रकाश डालने का उपक्रम है। विद्वान लेखक ने अपने पूर्ववर्ती लेखकों के विचारों का भरपूर उपयोग करते हुये अनेक निष्कर्ष निकाले हैं। उनसे अनेक प्रश्नों को समाहित करने का प्रयास हुआ है, तो साथ ही अनेक नई जिज्ञासाओं के जागरण के द्वार भी खुले हैं। मैं इसे लेखक के श्रम की सफलता मानता हूँ। आशा करता हूँ - पुस्तक का दूसराखण्ड भी प्रकाश में आकर ग्रंथ को शीघ्र ही पूर्णता प्रदान करेगा। मुनि बुद्धमल्ल दिनांक - 10 अगस्त, 1999 तातेड़ गेस्ट हाऊस, सरदारपुरा, जोधपुर For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy