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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक शताब्दी में उर्दू के पैर इतने जम चुके थे, तथा मुंशियों और वकीलों को स्वार्थ के आगे मातृभाषा की इतनी कम चिन्ता थी, कि फल कुछ भी न निकला । कुछ जानने वालों का तो यह विश्वास है कि वकील और मुंशी जानबूझ कर न्यायालयों की भाषा क्लिष्ट रखना चाहते थे, जिसमें साधारण जनता का काम उनके बिना चल न सके । पिछली श्रद्ध शताब्दी में इन प्रान्तों में एक बड़ी विचित्र परिस्थिति पैदा होगई थी। स्कूलों में तीनचौथाई लड़के तथा ६५ प्रतिशति लड़कियां हिन्दी पढ़ती थीं । हिन्दी का पत्र तथा पुस्तक - प्रकाशन उर्दू से कई गुना था | हिन्दी का प्रचार संयुक्तप्रान्त, बिहार, मध्यप्रान्त, राजपूताना तथा मध्यभारत में तो था ही, पंजाब, सिंध, सीमाप्रान्त तथा काश्मीर तक अवाधरूप से फैल रहा था। गांधी जी के प्रयत्न से दक्षिणभारत में हिन्दी तथा नागरी जानने वालों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही थी। कलकत्ता, बंबई जैसे हिन्दीभाषी नगर हिन्दी के बड़े बड़े केन्द्र बन चुके थे 1 फिरभी हिन्दी के लिये न्यायालयों में स्थान नहीं था । लड़का पाठशाला में हिन्दी पढ़ता था, पर उसे ज्ञात था कि यह भाषा तथा लिपि भावी जीवन संघर्ष में उसके किसी काम न आवेगी ! काशी नागरी प्रचारिणी सभा तथा हिंदी - साहित्य-सम्मेलन ने न्यायालयों में हिन्दी का व्यवहार बढ़ाने का सरतोड़ प्रयत्न किया परंतु कोई फल न निकला । उस समय की गवर्नमेन्ट को दोष देना व्यर्थ है। बीच बीच में सुनने में श्राता था कि श्रमुक जज, मुन्सिफ़ अथवा डिप्टी कलेक्टर ने हिंदी का प्रार्थनापत्र लेने से इनकार कर दिया। हमने यह भी सुना है For Private And Personal Use Only
SR No.020514
Book TitleNyayalay Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHindi Sabha Sitapur
PublisherHindi Sabha Sitapur
Publication Year1948
Total Pages150
LanguageHindi, English
ClassificationDictionary
File Size4 MB
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