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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth Aargarya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिली, तो हम अपना परिश्रम सफल समझेगे। कुछ लोग अबभी हिंदुस्तानी का स्वप्न देख रहे हैं । हमें बड़ी प्रसन्नता होती, यदि हिंदुस्तानी अथवा ठेठ बोली में पर्याय बनाना संभव होता । पर इसप्रकार के शब्द यदि बनाने हैं, तो किसी 'क्लैसिकल' भाषा को भित्ति पर ही ऐसा संभव है । अंगरेज़ी बड़ी उन्नत लाषा है, पर उसका कितना काम लैटिन और ग्रीक के बिना चलसकता है ? वर्तमान परिस्थिति में यदि हम चाहते हैं, कि हमारे शब्द भारत भर में समझे जाय, तो हमें संस्कृत का आधार लेना पड़ेगा । कुछ ही दिन पहले उड़ीसा के गवर्नर श्री काटजू ने तो संस्कृत को भारत की राष्ट्रभाषा का पद देने का सुझाव दिया है । श्री काटजू का स्वप्न सफल होने में स्पष्ट कठिनाइयां हैं, पर संस्कृत-मूलक हिंदी तो भारत की राष्ट्रभाषा होकर रहेगी। यही नहीं । अपने आप को हीन समझने के भाव हम यदि एक क्षण के लिये छोड़ सकें , यदि हम देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता पर दृष्टि डालें, यदि हम जान लें कि भारत की तीसकरोड़ में से पचीस करोड़ जनता हिंदी अथवा उससे संबद्ध भाषाएं बोलती और लिखती है, तथा शेष ५ करोड़ का भी संस्कृत द्वारा उससे स्पष्ट सम्बन्ध है, यदि हम यह भी जान लें कि संस्कृत और फ़ारसी में, तथा संस्कृत और ग्रीक-लैटिन में मूल सम्बन्ध रहा है, और अन्त में यदि हम यह न भूलें कि जापान, चीन, बरमा, लंका आदि के सत्तर करोड़ निवासी बौद्ध संस्कृति के कारण हमारे बहुत निकटस्थ हैं, तो हम देखेंगे कि हमें एक माप्य समय के भीतर हिन्दीभाषा तथा नागरी लिपि को सारी पथिवी की अन्तर For Private And Personal Use Only
SR No.020514
Book TitleNyayalay Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHindi Sabha Sitapur
PublisherHindi Sabha Sitapur
Publication Year1948
Total Pages150
LanguageHindi, English
ClassificationDictionary
File Size4 MB
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