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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नातिदीपिका निराकुल और शान्तचित्त में रहते हैं. वे खेवटिया के समान सद्गुरु को पाकर अतिशीघ्र पार होते हैं ॥७॥ हिंसा आदि पापों और क्रोधादि कषायों को रोकने की प्राथश्यकताभक्तिर्देवगुरौ तथा जिनमते सङ्के विनाशं गता, हिंसाद्याश्रवपञ्चकेन रिपभिर्व्याप्त क्रुधाद्यैः परम् । सौजन्यं गुणिसङ्गमोऽक्षदमनं दानं तपो भावना, वैराग्यं परमापकार्यमधुना कार्य हि तत्पोषणम् ॥ हिंसा असत्य चोरी अब्रह्म(कुशीन)और परिग्रह इन पांच माश्रवों (पापों)ने देव गुरु जैनधर्म और संघ की भक्ति का नाश कर दिया है। सजनता को क्रोधादि शत्रओं ने दबा रक्खा है, तथा गुणवान् पुरुषों की सङ्गति, इन्द्रियों का दमन,दान,तप,भावना और वैराग्य इस, समय अत्यन्त क्षीण हो गये हैं, इसलिए इन का पालन पोषण करना चाहिये ॥८॥ ____ अरिहन्त भक्ति से होनेवाले लाभअर्हक्तिनभोमणौ समुदितेऽज्ञानान्धकारो महा नश्यत्यत्रमनोऽम्बुज विकसति प्रोबोधितानांनृणां । खेदं कश्मलघूकलोकनिचयः प्राप्नोति चान्ध्यं महम्लानि मोहमहाभिमानकुमुदान्यामादयन्ति क्षणात् ॥ ___ अरिहन्त भक्तिरूप सूर्यका उदय होने पर जीवों का अज्ञानान्धकार दूर होता है, उपदेश को ग्रहण करने वाले मनुष्यों का हृदयकमल For Private And Personal Use Only
SR No.020509
Book TitleNiti Dipak Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Jethmal Sethiya
PublisherBhairodan Jethmal Sethiya
Publication Year1925
Total Pages56
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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