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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नीतिदीपिका दान चार प्रकार के हैं, अभयदान औषधदान आहारदान और ज्ञानदान । अनन्त पुण्य उत्पन्न करने वाले इन दानों को यथाशक्ति प्रति दिन कग्ना, गुरु को मस्तक नवाकर प्रणाम करना, मुख से सत्य वचन बोलना, कानों से सदाशास्त्र सुतना अन्तःकरण से सब के साथ समानभाव रखना, भुजाओं से उत्तम पुरुषार्थ करना, ये सब उदार चित्त वाले महापुरुषों के विना वैभव (ऐश्वर्य ) के आभूषण हैं ||२७|| (५१) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुक्तवेमां जननाटवीं जिगमिषुश्चेत्वं सदा मौख्यदां, मुक्तिपुरीं तदा न वसतिः कार्या कषायमे । श्लाघाऽप्यस्य ददानि माहमचिराच्चिते प्रसन्ने यतोयस्माज्जन्तुरयं पदात्पदमपि स्वैरं न गन्तुं प्रभुः ॥ ९८ ॥ यदि तुम इस संसार रूपी भयानक वन को छोड़कर अनन्त सुख देनेवाली सुन्दर मुक्तिरूप नगरी को जाना चाहते हो, तो कषाय रूपी वृक्ष के नीचे निवास मत करो। क्योंकि इस कषाय की प्रशंसा भी स्वच्छ चित्त में मोह उत्पन्न करती है, जिससे यह प्राणी स्वच्छन्द्र एक पैर भी आगे बढ़ाने को समर्थ नहीं होता है ॥ ६८ उपसंहार For Private And Personal Use Only - मन्दानामतिशुद्धबोधजनकं सन्मार्गसंयोजक, ग्राह्यं मध्यमधीजुषां रुचिकरं वैराग्यपुष्टिप्रदम् । चित्तस्वास्थ्यकरं सदा शुभधियां सन्तोषवृद्धयावहं, नीदीपक भूतमेतदनिशं चित्ते सदा भासताम् ॥
SR No.020509
Book TitleNiti Dipak Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Jethmal Sethiya
PublisherBhairodan Jethmal Sethiya
Publication Year1925
Total Pages56
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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