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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नीतिदीपिका स्वाध्यायाध्ययनं प्रदानसुतपः सद्भावपूजादिकं, निःशेषं खलु निष्फलं शुभतरां नित्यं विना भावनाम् ॥ जैसे नपुंसक पर चन्द्र के समान मुग्वाली सुन्दर स्त्री के कटाक्ष तथा लोभी की सेवा निष्फल होती है। पत्थर पर कमल लगाना तथा ऊसर जमीन में जल वरसना व्यर्थ होता है। वैसे ही स्वाध्याय पठन पाठन दान तप भाव सहित पूजा आदि सब उत्तम गुणा एक शुभभावना के विना निष्फल है || (४५) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्व ज्ञातुमयां सुपुण्यमग्विलं संप्रामत्युत्कर्ट, को हन्तुममोघवानफलं भाक्तुं तपः सेवितुम ! संसारार्णवपारसन्पममयाल हा भवेनित्यं भाव भावनां हृदि तदा त्यक्त्वा मखे ! चापलम्।। हे मित्र! यदि समस्त पदार्थों को जानने की सब श्रेत्र पुण्य को प्राप्त करने की. तीच कोन का नाश करने की मनोवांछित फल का भोग करने की, तपस्या करने की, तथा थोड़े ही समय में संसार समुद्र को पार करने की तुम्हारी इच्छा है, तो चलता का त्याग कर हृदय में हमेशा भावना का चिन्तन करी ॥ ॥ संसारार्णवस्त्तरि प्रशमदां मन्तोषमञ्जीविनी, नित्यं मारवा मेघपटली मुक्तः पथे वेसरीम | मनाक्षणसुवागुरां बलवती रागादिशैलाशनि, हे सावो! भज भावनां किमपरैः कामार्थसिद्धिप्रदाम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020509
Book TitleNiti Dipak Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Jethmal Sethiya
PublisherBhairodan Jethmal Sethiya
Publication Year1925
Total Pages56
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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