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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सेठियाप्रन्थमाला (३०) का नाश करते हैं । मायाचारी पुरुष कपट से होने वाले अतुल अनर्थ की परवाह नहीं करते हैं, जैसे बिलाव आनन्दपूर्वक दूध पीता है, लेकिन दूध पीने के कारण ऊपर से पड़ने वाले डंडे की परवाह नहीं करता है ॥ ५५ ॥ मायामत्र विधाय मुग्धजनतां ये वञ्चयन्ता जना अज्ञानान्ध्यसमन्विताः खलु निजोत्कर्ष परं मन्यते। ते मोहावृतमानसाः कुमतयः पश्यन्ति नात्मच्युति, दीपे प्रज्वलिते पतन्ति सततं मत्ताः पतङ्गा यथा॥५६।। जो अज्ञान से अन्धे हुए मनुश्य छल कपट कर दूसरे भोले जीवों को ठगते हैं, और इसी में अपनी उन्नति समझते हैं, उन दुर्बुद्धियों का चित्त मोह से ढका हुआ है, इसलिए वे अपनी होनेवाली हानि को नहीं देख सकते हैं, जैसे मोहित होकर दीपक में गिरते हुए पतङ्ग अपने होनेवाले नाश को नहीं समझते हैं ॥५६॥ लाभ से हानि यदुर्गामटवीं चरन्ति गहनं गच्छन्ति देशान्तरं, गाहन्ते जलधिं गभीर मतुलक्लेशां कृषि कुर्वते । सेवन्ते कृपणं पति मर गादं दुष्कृत्यमातन्वते, कुर्वन्त्याचरणं विगह्यमनिशं लोभाभिभूता जनाः ॥५७॥ ___ लोभ से सताये गये (लोभी) मनुष्य भयानक वन में भ्रमण करते हैं । विकट देशान्तर में गमन करते हैं । गम्भीर समुद्र में प्रवेश करते हैं । अत्यन्त कष्ट देने वाली खेती करते हैं | कंजूस For Private And Personal Use Only
SR No.020509
Book TitleNiti Dipak Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Jethmal Sethiya
PublisherBhairodan Jethmal Sethiya
Publication Year1925
Total Pages56
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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