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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir नि:शेषसिद्धान्तविचार-पर्याये करचरणनयणदसणाइ-धोवणं पंचमो उ अइसेसो। आयरियस्स उ सययं कायचो होइ नियमेण ॥ २३६ ॥ अवि य निग्गयभावो तहवि य रक्खिजए स अण्णेहिं । वंसकडिल्ले छिन्नो वि वेणुओ पावए न महिं ॥ २४९ ॥ विजाण परिवाडी पव्वे पव्वे य दिति आयरिया । मासद्धमासियाण पदव पुण होइ मज्झं तु ॥ २५१ ॥ पक्खस्स अट्टमी खलु मासस्स य पक्खियं मुणेयव । अण्णं पि होइ पव्व उवरागो चंदसूराण ॥ २५२ ॥ चूणिर्यथा- 'पक्ख पव्वस्स मज्झं अट्टमि बहुलाइया मास त्ति का मासस्स मज्झे पक्खिय किण्हपक्खस्स चउद्दसीए विजासाहणोवयारो' इति पाक्षिकविचारः । अइ उम्घाडपोरिसीए इंतववंताण पोरिसीभंगो भवइ तो आयरिपण चेव अकयसुयाण सगासं गंतवं, अह मायरिओ बुड्ढत्तणेणं गेलण्णेण वा न सकेइ गंतुं ताहे अकडसुत्ता मज्झे आयरियसगासमागंतु आलोइंति' इति अन्यत्र उषितानां प्रभातादौ आलोयणकस्य विचारः। जहा य अंबुनाहमि अणुबंधपरंपरा । वीई उप्पजए एवं परिणामो सुभासुभो ॥ ३१६ ॥ षष्ठस्यैते समाप्ताः । सप्तमे तु यथाधम्मकहनिमित्तेहि य विजामतेहिं चुण्णजोगेहिं । इन्भाई जोसियाण संथवदाणे जिणाययण ॥ ३ ॥ संबोहणट्टयाए विहारवत्ती व जिणवरमहे वा। महयरिया तत्थ गया निजरणं भत्तवत्थाणं ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020506
Book TitleNishesh Siddhant Vichar Paryay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year1973
Total Pages181
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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