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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra દૂર www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir निःशेषसिद्धान्तविचार- पर्याये प्रकल्पो निशीथः तद्धारी जघन्यगीतार्थः । कल्पधरो मध्यम इत्यर्थः । पुव्वं सत्यपरिणा अहीयपढियार होउ उबटूवणा । afia जीवणिया किं सा उ न होउ उबटूवणा ? ॥ १७५ ॥ आयारस्स उ उवरिं उत्तरायणाउ आसितु । दसवेयालिय उवरिं इयाणि किं ते न हुंती उ ? ॥ १७६ ॥ व्यवहार तृतीय देशके । आचार्यादिपदविचारःतिवासपरियागस्स उवज्झायन्तं कप्पर, तस्स अप्पपरियागस्स नत्थि खेयबहुओ जेण आयरियतं पि काहि पत्रवासपरियागस्स उवज्झायत्तं आयरियत्तं पि कप्पर, बहुतरवासपरियावत्ते खेयसहतराउ तेण तस्स दो ठाणाणि कप्पंति, छन्द वासाणं परेण विय gateपरियाओ भइ, तस्स सव्वाणि वि सङ्घाणाणि कति उवज्झायत्तं आयरियत्तं गणित्तं पवत्तित्तं थेरतं गणावच्छेइयत्त (१८३) इत्याचार्यादिपदविचारः । राइत्थी जाए ताए अग्गमहिसीए कुलकण्णगाए वा पयासु तिसु वि पारंचिओ, अमच्चीए अणवट्टो, विहवाए अविसेसियाप पागइत्थी य [ अवसेसियाए] मूलं, लम्हा एयाओ परिहरियव्वाओं I ( २४९ - २५० ) इति उत्थापनाविषयः । संघो गुणसंघाओं संघायविमोयओ य कम्माणं । रागोसविमुको होइ समो सव्वजीवाणं ॥ ३२२ ॥ परिणामियबुद्धीए उबवेओ होइ समणसंघो उ । कज्जे निच्छियकारी सुपरिच्छियकारओ संघो ॥ ३२३ ॥ दुक्खेण लभइ बौहि बुद्धां वि य न लभइ चरितं तु । उमादेसणार तित्थयरासायणाए य ॥ ३३५ ॥ चतुर्थोद्देशके यथा- जाओ य अजाओ वा दुविदो कप्पो उ होइ नायव्वो । एक्केको वि यदुविहो समत्तकप्पो य असमत्तो ॥ १५ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020506
Book TitleNishesh Siddhant Vichar Paryay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year1973
Total Pages181
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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