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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir ज छेदसूत्रोने ' श्रुतपुरुष' नी रचनामां मस्तिष्कमा स्थान अपायु छे। माथी आ छेदत्रो तमाम सिद्धातामा सारभूत गणषामां मावे ते सुयोग्य छे अने अहिंआं मुख्यताए छेदना विचारे। ने पर्यायो छे । पम मानीने मुखपृष्ठ उपर 'नि:शेषसिद्धांतषिचार' पर्याय' लख्यु होय ! आ तर्कना आधारे आ प्रथनु गुणनिष्पक्ष माम मुखपृष्ठ उपर राख्यु योग्य गणाय । ग्रंथ विषय परिचय परिमाणमा नाना देखाता पण अर्थथी अने विषयथी अगाध, मा प्रथा बीजा बीजा आगमोना अर्थ तथा विचाराने अल्पस्थान आपया साथे छेदनथोना विचार अने अथेने मुख्य स्थान आप्यु छ । नाना नाना घणा विषयाने प्रकाश आपता ग्रंथकारे अनुधर्म उपर सारो प्रकाश फेक्यो छे । धर्तमानमा घणांओ पेपर आदि द्वारा एकवार नहिं यण अनेकवार उच्चारी के लखी चूक्या छे के- 'भगवाननु कहेलु करवानु छे करेलु नहिं ' तेओ प्रथना प्रथम खण्डनु ३८ मुं पत्र बांधी जाय, वधु खुलासा माटे निशीथचूर्णिनी ४८५५ मी गाया, तेमज यतिजीतकल्प, बृहत्कल्प ने जोइ सत्यनो स्वीकार करे एज इच्छा । जे जे विचारा संपिंडित (संकलित ) कर्या छे ते ते अंगेना मूलन थनी गाथाओ तथा अर्थने यथावत् उद्धत करी तेना पर पोते निष्कर्षरूपना टू का संस्कृत वाक्या मूक्या छ । जेथी आ गाथानो शो आशय छे ? ते अल्प बुद्धिवालापण तूर्त समजी जाय तेम छ । माज कारणे संग्रहनो प्रयास घणोज स्तुत्य छे अने वर्तमानसमये मुद्रणनो प्रयास पण अल्प उपकारक नथी। সুগন্ধা-ববি मा लगुकायग्नथना कर्तानो परिचय मेललवा मुख्य साधन For Private And Personal Use Only
SR No.020506
Book TitleNishesh Siddhant Vichar Paryay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year1973
Total Pages181
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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