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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir निशीथविचारा: कप्प' कहित्तु ठवणा सावणबहुलस्स पंचाहे ॥ ३१५० ।। अर्थ:-आसाढपुण्णिमाए पविट्टा, पडिवयाओ आरम्भ पंच दिणाई संथारग-तण-डगल-छार-मल्लगाईय गेण्हति । एत्थ उ अणभिग्गहियं वीसइरायं सवीसई मासं । तेण परमभिग्गहियं गिहिनायं कत्तिओ जाव ॥ ३१५१ ॥ अर्थ:-इत्थ आसाढपुणिमाए सावणबहुलपंचमीए वासपजोसविए वि अप्पणी अणभिग्गहियं । अहवा जइ गिहत्था पुच्छंति अजो! तुब्भे एत्थ वरिसाकालं ठिया अह न ठिया? एवं पुच्छिपहि अणभिहियं ति संदिद्धं वक्तव्यं । वीसरायं सवीसइरायं मासं। जा अभिवढियवरिसं तो वीसइरायं जाव अणभिग्गहियं । अह चंदवारसं तो सवीसइराय मास जाव अणभिग्गहिय तत्कालात् परतः भिगृहीतं 'इह व्यवस्थिता' इति पुच्छताण कहंति । असिवाइकारणेहिं अहवा वासं न सुट्ट आरद्धं । अभिवइढियमि वीसा इयरेसु सविसईमासो ॥ ३१५२ ॥ अर्थः-असिवाइएहि कारणेहिं जइ अच्छइ तो आणाइया दोसा। अह गच्छंति तो गिहत्था भणति-एए सवण्णुपुत्तगान किचि जाणंति, मुसावायं च भासंति । ठियामो त्ति भणित्ता जेण निगया । तम्हा भिवढियवरिसे वीसहराए गए गिहिनाय करिति । तिसु चंदररिसेसु सवीसइराए मासे गप गिहिनायं करिति । अत्थ अहिगमासगो पडइ-(चटति) वरिसे तं अभिवढियवरिस भण्णइ । जत्थ न पडइ तं चंदवरिसं । सो य अहिगमासगो जुगस्स अंते मज्झे वा भवइ । जइ अंते तो नियमा दो आसाढा भवंति अह मज्झे तो दो पोस।। सीसी पुच्छइ-कम्हा अभिवइढियवरिसे वीसतिराय चंदवरिसे सवीसइमासो ? उच्यते-जम्हा अभिवइढियवरिसे गिम्हे चेव सो For Private And Personal Use Only
SR No.020506
Book TitleNishesh Siddhant Vichar Paryay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year1973
Total Pages181
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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