SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir निशीथविचारा: संथारुत्तरपट्टे व पेक्खिए जहुग्गमे सूरो || इति प्राभातिकपडिलेहणगाथा (१४२५) पतेसु प्रेक्षितेसु यथा रविः उदेति । चउफलं मोकल वा खंधे करेइ दुवार इति सीसवारिया करेइ । दो वि बाहाओ छाइतो संजह पाउरणेण पाउरह ॥ एगओ दुहओ वा कप्पअंचला खंधाराविया गरुलपक्ख पाउणइ । इति ( १५५५) प्रावरणविचारः। भिक्खुवियार विहारे दुइजले व गाममणुगामं । सीसदुवारं भिक्खू जे कुजा आणमाईणि ।। १५२४ ।। अनेन सीसढकणनिषेधः । जल्लो उ हाइ कम मला उ हत्थाइघट्टिो सडइ । पंको पुण सेउल्लो चिक्खला वावी जो लग्गा ॥ १५२२ ॥ सक्कमहा इंदमही आइसदाओ सुगिम्हगाइ, जो व जत्थ महामही एपसु मा पमत्तं देवया छलेजा । तेण अणागाढजेोगनिक्खेवो । किश्चाऽन्यत-तेसु य सक्कमहादिदिवसेसु विगइलोभा भवइ, ताओं दुब्बलसरीरा भुजति, ताहे पीणिजन्ति (बलिनो भवन्तीत्यर्थः) । इसरे नाम आगाढजोगवाही ते जोग वहंति, न तेसिं उद्देसो न वा पुवुद्दिटुं पढ़ति (१६०८) इत्यक्षरेरनध्याये योगाद्वहननिषेध: । तक्काइ एगोगियं भुजइ इति (१६०७) तकाम्बिलाक्षराणि । विगई विगईभीओ विगइगय जो उ भुजए भिक्खू ।। विगई विगइसहावा विगई विगई बला नेह ॥ १६२२ ॥ व्याख्या-घृतादिविगई, बिइयविगइगहणेण कुगई । विगईए कयं विगइकयं जहा विस्संदणं, विगई वा गय जम्मि दवे तं दधं विगइगय', जहा दध्यादनः । विगईए भुत्ताए साहु विगयसहावो भवइ, सा य विगई भुत्ता विगई नरगाइयं बला नेइ इत्यर्थः । विगइमणट्ठा भुजइ न कुणइ आयंबिल न सहहह । For Private And Personal Use Only
SR No.020506
Book TitleNishesh Siddhant Vichar Paryay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year1973
Total Pages181
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy