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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir नि:शेषसिद्धान्तविचार-पर्याये निग्गओ आयरिओ जान नियत्ता ता दसाआ न छिजति ( ९७४ गाथाचूर्णिः ।) इति सूरिणा वस्त्रग्रहणाय गन्तव्यम् । चाउम्मामातीय वासासु उउबद्ध मासतीय वा धुझा वामातीयं वसमाणे कालउ निरुपम ॥ इति मासकल्पाक्षराणि । सेसं मंडलिराइणि सुब्भी दुभिवब्याविरोहण करंबेडं मंडलिए भुंजलि, एवं सव्वेसिं समया भवइ । गाथा तु तम्हा विहिर भुजे दिण्णभि गुरुण सेस राइणिओ । भुयइ करंबेऊण एवं समया उ सव्वेसि || सागारिउत्ति को पुण काहे कइविही व सो पिंडी । असेजायरी व काहे परिहरियो व सो कस्सा ॥ दोसा वा के तस्सा कारणजाए व कप्पए कम्हि । जयणाए वा काए पगमणेगेसु घेत्तव्यो । (११३८-९) सेन्जायरो पह वा पहुसंदिट्ठो ध हाइ काययो ।। एगमणेगी व पहु पहुसंदिट्ठो वि पभेव (११४४ ) । जइ जग्गति सुविहिया करिति आवस्सगं तु अण्णस्थ । सेन्जायरी न होइ सुत्ते व कप व सो हाइ ।। अण्णत्थ व सोऊणं आवस्सग चरिममन्नहिं तु करे । दोणि वि तरा भवंति सत्थाइसु अन्नहा भयणा (११४८-९) इदं च प्रायश: सार्थादिषु सम्भवति इत्यर्थः । असइ वसहीए वीसुं वसमाणाणं तराउ भइयत्वा । तत्थण्णत्थ व वासे छत्तछायं च वजाति (११५) तण-डगल-छार-मल्लग-सेजा संथार-पीठ-लेवाइ । सेजायरपिंडो सो न होइ सेहो व सोहिओ ।। आपुच्छियमुग्गाहिय वसहीआ निगहोगहे एगो । पढमाई जाव दिवसं बुच्छे वज्जेजऽहोरत्तं ॥ (११५४-११५५) एकशब्द: प्रत्येकं सम्बध्यते ॥ 'पढमाइ जाव दिवसं 'ति अणुग्गए सूरे निग्गओ सूरोदयाओ असेजायरमिच्छइ । अन्नो भणइ सूरुग्गमे For Private And Personal Use Only
SR No.020506
Book TitleNishesh Siddhant Vichar Paryay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year1973
Total Pages181
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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