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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 5 66 www.kobatirth.org V || वहिसाओ || जइ णं, भन्ले | क्वओ । जाव दुवालस ܝܙ अज्झयणा पन्नत्ता । तं जहा पन्नत्ता, खलु. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - निसढं माअणि - वह वहे पगया जुत्ती दसरहे दढरहे य । महाधणू सत्तधणू दसघणू नामे सयधणू य ॥ " 66 "6 जइ णं, भन्ते, समणेणं जाव दुवालस अज्झयणा पढमस्स णं, भन्ते...। उक्खेवओ । एवं " << >> जम्बू 11 तेण कालेणं तेणं समयेणं वारवई नामं नयरी होत्था दुवालसजोयणाय मा [ जीव] पच्चकखं देवलोयभूया पासादीया 10 दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ For Private and Personal Use Only तीसे णं बारवईए नयरोप बहिया उत्तरपुरत्थि मे दि सीभोर एत्थ णं रेवए नाम फवर होत्या तुङ्गे गयणयलमलिहन्तसिहरे नाणाविहरुक्ख गुच्छ गुम्मलयावल्लीपरिंगयाभिरामे हंसमियमयुरकोञ्च सारसकागमयण सालाकोइल15 कुलोववे तडक डगवियर उभरपवाल सहर पडरे अच्छरगणदेवसंघविज्जाहर मिहुण संनिचिण्णे निच्चच्छणए दसोवरवरपुरिसते लोक बलवगाणं सोमे सुभव पियदंसणे सुरूवे पासादीए [जाव] पडिरूवे ||
SR No.020505
Book TitleNirayavaliyao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA S Gopani, V J Chokshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1934
Total Pages406
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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