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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निरयावलियासु सक्के देविन्दे देवराया, जेव उवागच्छइ । २ सकस्स देविन्दस्स देवरन्नो दिवं देविडि दिव्वं देवज्जुई दिव्व देवाणुभावं उवदंसेइ । से तेणट्टेण, गोयमा एवं वुच्चइ बहुपुत्तिया देवी २” । “बहुपुत्तियाणं, भन्ने, देवीणं 5 केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? " " गोयमा चत्तारि पलिओवमाई ठिई पन्नत्ता" । "बहुपुत्तिया णं भन्ते, देवी ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं लिइक्खएणं भवक्खएणं अणन्तरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ, कहिं उववज्जिहिइ ?" गोयमा, इहेव जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे विझगिरि10 पायमूले विभेलसंनिवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पच्चायाहिइ " ॥ तप णं तीसे दारियाए अरमापियरो एक्कारसमे दिवसे वोइकन्ते जाव बारसेहि दिवसेहिं वीइकन्तेहिं अयमेयारूवं नामधेज्जं करेन्ति-" होउ णं अम्हं इमीसे दारियाए 15 नामधेज्जं सोमा " ॥ तए णं सोमा उम्मुकबालभावा विनयपरिणयमेत्ता जोव्वणगमणुपत्ता रूवेण य जोधणेण य लावण्णेण य उकिट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाव भविस्सइ । तए णं तं सोमं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं विनय20 परिणयमेत्तं जोवणगमणुप्पत्तं पडिकुविएणं सुक्केणं पडि. रूवएण नियगस्स भाइणेज्जस्स रकुडम्स भारियत्ताए दलयिस्सइ । साणं तस्स भारिया भविस्लइ इट्टा कन्ता जाव भण्डकरण्डगसमाणा तेल्लकेला इव सुसंगोविया चेल पेडा इव सुसंपरिहिया रयणकरण्डगो विय सुसारक्खिया 25 सुसंगोविया, मा णं सीय [ जाव ] विविहा रोयातङ्का फुसन्तु ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020505
Book TitleNirayavaliyao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA S Gopani, V J Chokshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1934
Total Pages406
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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