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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९४ निरयावलियासु य लेणभोगेहि य वत्थभोगेहि य सयणभोगेहि य उवनिमन्ते हिन्ति । तए णं से दढपइन्ने दोरए तेहिं विउलेहिं अन्नभोएहिं जाव सयणभोगेहि नो सज्जिहिइ नो गिज्झि. हिइ नो मुच्छिहिइ नो अज्झोववज्जिहिइ । से जहानामए 5 पउमुप्पले इ वा पउमे इ वा जाव सयसहस्स पत्ते इ वा पङ्के जाए जले संवुड्ढे नोवलिप्पइ जलरएणं एवामेव दढपइन्ने वि दारए कामेहिं जाए भोगेहिं संवट्टिए नोवलिप्पहिइ मित्तनाइनियगसयणसंबंधिपरिजणेणं । से णं तहारू वाणं थेराणं अन्तिए केवलं बोहिं बुझिहिइ बुज्झिहित्ता 10 मुण्डे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्वइस्सइ । से णं अणगारे भविस्तइ, ईरियासमिए जाव सुहुयहुयालणो इव तेयसा जलन्ते । तस्स णं भगवओ अणुत्तरेणं नाणेणं एवं दसणेणं चरित्तेणं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं मद्द वेणं लोघवेणं खन्तीए गुत्तीए मुत्तिए अणुत्तरेणं सव्वसं15 जमतवसुचरियफलनिब्याणमग्गेणं अप्पाणं भावमाणस्ल अणन्ते अणुत्तरे कसिणे पडिपुण्णे निरावरणे निव्वाघाए केवलवरनाणदसणे समुप्पज्जिहिइ । तए णं से भगवं अरहा जिणे केवली भविस्सइ, सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स परियागं जाणिहिइ । तं जहा-आगई गई ठिई चवणं उ. 20 ववायं तकं कडं मणोमाणसियं खइयं भुत्तं पडिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्म-अरहा अरहस्सभागी, तं तं मणवयजोगे वट्टमाणाणं सवलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सइ । तए णं दढपइन्ने केवली एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे बहूई वासाई केवलि परि25 याग पाउणित्ता अप्पणो आउसेसं आभोपत्ता बहूई भ त्ताई पच्चक्खाइस्सइ । पच्चक्खाइत्ता बहूई भत्ताई अण For Private and Personal Use Only
SR No.020505
Book TitleNirayavaliyao
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA S Gopani, V J Chokshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1934
Total Pages406
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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