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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामान्य और विशेष का उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरणऐक्यबुद्धिर्घटशते, भवेत्सामान्यधर्मतः । विशेषाच्च निजं निजं, लक्षयन्ति घटं जनाः ॥४॥ अर्थ सामान्य धर्म से सौ घड़ों में एकाकार बुद्धि होती है, और विशेष धर्म के द्वारा सब मनुष्य अपने- अपने घड़े को अलग- अलग पहचान लेते हैं । विवेचन प्रस्तुत कारिका में उदाहरण द्वारा सामान्य और विशेष दोनों का अलग-अलग कार्य निर्देश किया गया है । उदाहरण में कहा गया है कि एक ही स्थान पर रखे हुए सौ घड़ों में घटत्वरूप सामान्य धर्म के आधार से 'यह भी घड़ा ' 'यह भो घड़ा' - इस प्रकार एकाकार प्रतीति होती है और काला, पीला, लाल, छोटा, बड़ा आदि विशेष धर्मों के द्वारा उन घड़ों में से प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने घड़े को अलग से जान-पहचान लेता है, 'यह लाल घड़ा मेरा' 'यह पीला घड़ा मेरा' - इस तरह पृथक्करण कर लेता है । : विशेष धर्म से होने वाली इस पृथक्करण की नीति के कारण किसी भी व्यक्ति को अपना घड़ा पहचानने में कोई भ्रान्ति नहीं होती । १०] For Private And Personal Use Only
SR No.020502
Book TitleNaykarnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Sureshchandra Shastri
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year
Total Pages95
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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