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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८) नाडीदर्पणः । पूर्णदेहमें व्याप्तहो रुधिरको स्रोतके द्वारा वहन करतीहै । उसी रुधिरके वहने से शरीरको पोषण करती है । उन संपूर्ण धमनी नाडियोंका आश्रय हृदयस्थ रक्ताधार यंत्रहै, रक्ताधार यह एक स्थूलमांसनलिका ऊपरकी तरफ कुछ उठीहुईहै । यह नली समुदाय धमनी नाडीका मूलभागहै । इसी स्थानसैं धमनी नाडियोंकी अनेक शाखा प्रशाखा निकलीहै ये संपूर्ण देहमें व्याप्त है । इस समस्त सूक्ष्म नलाकृति मांसनलीका नाम धमनी है धमनी मार्गसैं हृदयका संचित रुधिर सकलदेहमें परिभ्रमण करके देहका पोषण करता है ॥ ३१ ॥ ३२ ॥ हृदययंत्र स्वभावसेंही सदैव खुलता मुदता रहता है, जैसे भिस्तीकी सछिद्र जलपूर्ण मसकको ऊपर से दाबनेसैं उस मुसकके भीतरका जल जैसैं छिद्रमें होकर बडे. वेगसैं निकलताहै, उसीप्रकार हृदयके मुदनसैं हृदयस्थ रुधिरका कितनाही अंश उछलकर तत्संलग्न स्थूल धमनीमें प्रवेश करे है । यह आकुंचन अर्थात् हृदयका मुदना जितनी देर में होताहै उतने कालमें वहउत्प्लत रुधिर धमनियोंके द्वारा समस्त देहमें परिभ्रमण करके फुप्फुसमें जायकर प्राप्त होताहै, फुप्फुससे फिर दूसरीवार हृदयमें आताहै, और उसीप्रकार जाता है, जीतेहुए देहमें इसीप्रकार यह क्रिया एक नियमके साथ वारंवार होती रहती है, इस रुधिरके उत्प्लव (उछलने) से संपूर्ण धमनी स्पन्दन कहिये फडकती है । रुधिर हृदयमेंसैं दारंवार उछलकर धमनीके छिद्रमें प्रवेश होकर वेगके साथ चलताहै, इसी कारण धमनी नाडीभी वारंवार तडफतीहें । यह रुधिरके उत्प्लव प्रकृति भेदसैं धमनीके तडफमैं भेद होताहै । [ अर्थात् यदि रुधिर मंदवंगसैं उछले तो नाडी मंद प्रतीत होतीहै, और रुधिर शीघ्र उछले तो नाडीभी शीघ्र चारिणी होती है ] एवं रुधिरके स्वभावानुसार नाडीमें स्थूलता, सूक्ष्मता, और कठिनत्वादि धर्म उत्पन्न होतेहै । अब जो जो अवस्था नाडीसें जैसे जैसे लक्षण होतेहै उन सबको मैं आगे कहताई ॥ ३३ ॥ ३४ ॥ ३५॥ नाडीके नाम । हिंस्रा स्नायुर्वसा नाडी धमनी धामनी धरा। तन्तुकी जीवितज्ञा च शिरा पर्यायवाचकाः ॥ ३६॥ अर्थ-हिंस्रा, स्नायु, वसा, नाडी, धमनी, धामनी, धरा, तंतुकी, जीवितज्ञा, और शिरा, ये नाडीके पर्यायवाचकशब्द है, अर्थात् ए नाडीके नामांतर है ॥ ३६ ॥ नाडीके भेद । तत्र कायनाडी त्रिविधा । एका वायुवहा । अन्या। मूत्रविडस्थिरसवाहिनी। अपरा आहारवाहिनीति ॥३७॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020491
Book TitleNadi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Dattaram Mathur
PublisherGangavishnu Krushnadas
Publication Year1867
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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