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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४७) है कि जो कुछ होता है सब अपनी ही भावना से होता है, इस लिए मूर्ति के भूषण चुराने या तोड़ने और मूर्तिका खण्डन करनेवाले को तो इसके संकल्प के अनुसार वैसा ही फल मिलता है, और ईश्वर परमात्मा के आदेश के प्रतिकूल चलने या निन्दक और न मानने वाले को इनकी भावनानुकूल वैसाही फल मिलता है। आर्य-श्रीमन् ! मूर्ति तो अपने ऊपर से माक्षिका तक भी नहीं उड़ा सक्ती तो दूसरों को इसकी भक्तिसे क्या लाभ हो सक्ता है । मंत्री-वाह ! जी वाह ! अच्छा मुनाया, आपके वेद भी तो कि मूर्ति की तरह अपने ऊपर से मक्खी भी नहीं उडा सक्ते जिनसे कि आप परमपद मुक्तिका फल प्राप्त करना मान रहे हो, यदि कहोगे कि वेदों से तो ज्ञान प्राप्त होता है तो हम यह पूछते हैं कि क्या वेद स्वयं ज्ञान कराने में समर्थ हैं या पुरुष अपनी बुद्धि से प्राप्त कर सक्ता है ? याद कहोगे कि वेद स्वयं ही ज्ञान कराने में समर्थ हैं तो आपका यह कहना कदापि सत्य नहीं है, क्योंकि याद ऐसा ही हो तो मूर्ख पुरुष भी अपने पास वेद रखने से वेदों के ज्ञान से योग्य होजाएं, परन्तु ऐसा कदापि देखने में नहीं आता है,क्योंकि वेदों को पास रखने वाले तो सहस्त्रों हैं, परन्तु उनके समझने वाले सैंकड़ों में से केवल एक या दो ही निकलेंगे । और यदि कहोगे कि अपनी बुद्धि से ही ज्ञान प्राप्त होता है तो ऐसे तो मूर्ति से भी ज्ञान प्राप्त होसक्ता है, जैसाकि हाथी की मूर्ति देखकर उस पुरुष को जिसने कभी हाथी नहीं देखा हाथी का ज्ञान होजाता है कि हाथी For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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