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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 57 17 ( ४० ) . मन्त्री - सत्य है, शरीर में जीवात्मा के होने से चेतन ही की सेवा मानी जाती है परन्तु सेवा तो वस्तुतः जड़शरीर की ही की जाती है, जीवात्मा की नहीं । और इसी तरह मूर्तिपूजा में भी जानना चाहिए, अथवा जैसे विद्वान के शरीर में जीवात्मा माना जाता है, वैसे ही मूर्ति में भी आपके मत के अनुसार ईश्वर माना जाता है क्योंकि ईश्वर सर्व व्यापक हैं ऐसा आप कहते हैं, इसवास्ते मूर्ति में भी ईश्वर का होना अवश्य है, इससे सिद्ध हुआ कि मूर्तिपूजा जड़पूजा नहीं है, क्योंकि मूर्तिपूजा करते समय प्रत्येक मतके भक्त यही प्रार्थना करते हैं कि हे सच्चिदानन्द ! ज्योतिः स्वरूप ! हे ईश्वर ! हे परमात्मन् ! tataराग! हे देवेश ! हे परमब्रह्म भगवन् ! हम को अपनी कृपा करके इस संसार सागर से पार करो । और ऐसे तो कोई भी नहीं कहता है कि जड़ पत्थर ! वा अयि मूर्त्ते ! तूं हमको इस संसार समुद्र से पार कर अथवा हमारा कल्याण कर । इससे स्पष्ट कि पूजा मूर्त्ति वाले की होती है और मूर्ति से तो केवल इस मूर्ति वाले का अनुभव होता हैं, वा ऐसे कह सक्ते हैं कि जैसे विद्वान की सेवा में विद्वान का शरीर ही एक कारण होता. है, वैसे ही मूर्ति वाले की सेवा वा पूजा में मूर्ति भी कारण होती है। और जैसा कि शरीर के विना केवल अकेले जीवात्मा की सेवा असम्भव है क्योंकि जीवात्मा निराकार वस्तु है, वैसे. ही ईश्वर परमात्मा की सेवा वा पूजा भी जो कि जीवात्मा से बहुत सूक्ष्म है मूर्ति के बिना कदाचित नहीं हो सक्ती है । आय - मला सच्चिदानन्द की सेवा में जड़को कारण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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