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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है, क्या इसी से द्वेष है ? आप लोग वीतराग परमात्मा की मूर्ति का सन्मान क्यों नहीं करते, और इसे नमस्कार क्यों नहीं करते और निन्दा क्यों करते हो ? यह तो केवल आपकी मूर्खता है मालूम होता है कि आपके गुरुओं का संयम भी नहीं है, क्योंकि उन में मान पाया जाता है और जिस स्थान में मान होता है वहां संयम नहीं रहसक्ता॥ द्वंदिया-हमारे गुरुओं में मान कैसे सिद्ध होता है । मन्त्री -आपके गुरु अपने चित्र का सत्कार तो कराते हैं अपने चित्र का असन्मान कदापि सहार नहीं सक्ते, और आप लोग अपने गुरुओं की * समाधि की पूजा करते हैं इनके विद्यमान शिष्य ऐसी बुरी बात से आपको क्यों नहीं रोकते। और समाधियां बनानेके समय आप लोगों को क्यों न रोक दिया ? कि समाधि इत्यादि जड़ वस्तुओं को मत बनाओ। वीतराग परमात्मा की मूर्ति के सन्मुख सिर झुकाने से तो. निषेध करते हैं, प्रत्युत शपथ कराते हैं कि मन्दिरों में मत जाओ तो यह मान और ईर्षा नहीं तो और क्या है ? अब अधिक कहांतक कहा जाए आप को चाहिये कि * रायकोट और जगराओं में रूपचन्द की और फरीदकोट में जीवणमल की और अम्बाले में लालचन्दजी की समाधियां विद्यमान हैं। वहां पर ढूंढिये भाई जाफर लड्डू बांटते हैं, और मस्तक झुकाते हैं । पाठकगणो! यह मूर्तिपूजा नहीं तो और क्या है ? जिस साहिब को उक्त बात में संशय हो स्वयं देखकर निश्चयकर सकता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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