SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७ ) से भयवं तहारुवं समणं वा माहणं वा चेइयघरे गच्छेजा हंता गोयमा दिणे दिणे गच्छेजा। से भयवं जत्थ दिणे ण गच्छेजा तओ किं पायच्छित्तं हवेजा गोयमा पमायं पडुच्च तहास्वं समणं वा माहणं वा जो जिणघरं न गच्छेजा तओ छ, अहवा दुवालसमं पायच्छित्तं हवेजा। से भयवं समणो वासगस्स पोसहसालाए पोसहिए पोसह वं भयरि । किं जिणहरं गच्छेजा । हंता गोयमा। गच्छेन्जा । से भयवं केणद्वेणं गच्छेजा । गोयमा णाण दंसण चरणट्ठाए गच्छेजा। जे केई पोसहसालाए पोसह बंभयारी जओजिणहरेन गच्छेजा तओ पायच्छित्तं हवेजा ? गोयमा जहा साहू तहा भाणियब्बं छठं अहवा दुवालसमं पायच्छित्तं हवेना ॥ ढूंढिया-महोदय ! यह सूत्र भी बत्तीस सूत्रों में नहीं हैं इसलिये हम लोक नहीं मानते ॥ मन्त्री-रे भ्रातः ! श्रीनन्दीसूत्र के मूलपाठ में इसका नाम है या नहीं ? दंदिया-हां श्रीनन्दीसूत्र के मूलपाठ में तो अवश्य है। For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy