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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १२० ज्योतिषचमत्कार नमीक्षायाः ॥ वाक्यनेकायनं देवविद्यां ब्रह्मविद्यां भूतविद्यां क्षत्रविद्यां नक्षत्रविद्यायं सर्पदेव जनविद्यामेतभगवोऽध्येमि,, छा० प्र० ७ भाषा० - नारद जी बोले कि ऋग्वेद को स्मरण करता हूं तथा साम, यजु प्रथर्व, बेद को स्मरण करता हूं (इतिहास पुराणं पचमं वेदानां वेद) और इतिहास पुराण पांचवां वेद पढ़ा है ( पित्र्यं ) प्रारूप (राशिं देवं ) देवमुत्पातज्ञानं जिस से दे यतों के किये हुये उत्पात का ज्ञान होता है अर्थात् गतित को ( निधिं ) महाकालादि निधिशास्त्र को ( वाकीवाक्य) तर्कशास्त्र ( एकायन ) नीतिशास्त्र ( देवविद्यां ) निरुक्तम् (ब्र ह्मविद्यास्) ब्रह्म सम्बन्धी उपनिषद् योग का ( भूतविद्यां ) भूत तन्त्र को ( क्षत्रविद्याम् ) धनुर्वेद को ( नक्षत्रविद्यां ) फलित ज्योतिष को ( पपदेवजनविद्याम् ) सर्पविद्या गारुड गन्ध युक्त नृत्य गीतादि वाद्य शिल्प ज्ञान को भी मैं हमरण करता हूं ॥ इम छान्दोग्य के वाक्य से कितनी विद्या सिद्ध होगई और यहां भी नक्षत्र राशि चक्र वाले फलित ज्योतिष को ( जिस्को अंशी जी महाशय यवनज्योतिष कहते हैं ) पृथक हां ग्रहण किया है । पृ० १५० - ज्योतिष घोर नास्तिकता का मूल है सर्व शक्ति मान् जगदीश्वर को छोड़ ग्रहों की पूजा करने लगे । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समीक्षा - मला झाप पूजा उपासना के तत्र को तो समझिये " मत्तः परतरं नान्यत् किंचिदस्ति धनंजय । मयि सर्व मिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इत्र के अनुसार प्रत्येक पदार्थ में ईश्वर की सत्ता अनुभव करके सूर्य्यादि ग्रहों के द्वारा भगवान की आराधना हिन्दु लोग करते हैं। नव ग्रह ही नहीं तैंतीस कोटि तथा असंख्य देवताओं की पूजा किई जाती है। इसी भाव को लेकर पर्वत नदी वृक्ष तक की पूजा हम लोग For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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