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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरा?- चतुर्थोऽध्यायः ॥ ९७ ज्यो. च. पृ. १५१ से नैाण की ममालोचना किई गई है, देखिये किस प्रकार पूर्वापर विरोध इस लेख में भरा है ॥ पं. १ ज्योतिषी लोग मृत्यु का विचार अच्छा करते हैं। और इसी से ज्योतिष का विचार अधिक तर पुष्ट हुआ है। मृत्यु का वर्ष ही नहीं किन्तु महीना और दिन भी ठीक वतला देते हैं मुझं निर्याणा की सच्चाई का पूरा २ विश्वाम है। ____ ममीक्षा-यहां नाप मच्ची बात शिन प्रकार मानने लगे धन्यवाद है, जब मृत्यु का विचार नछा बत-गाते हैं और आपको पूरा विश्वास भी है फिर आप उस विद्या का खण्डन करने को केसे उद्यन हो गये ?! आगे शापने लिखा है कि "नि.. -या की सच्चाई मानगिक विद्या से सम्बन्ध रखती है,, प्राप इमोचन गाल में पड़कता इस चमत्कार को नहीं लिख वेठे? ना. ममिक विद्या से नहीं, किन्तु नियाग्रा की सच्चाई गणित विद्या से सम्बन्ध रखती है। निर्याणा कोई तन्त्रविद्या नहीं है। किन्तु मृत्ययोग देख कर इस का गणित किया जाता है। (द्वाविंशःकथितस्तुकारणं द्रेष्काणे निर्धनस्य सूरिभिः) ___जोशी जी ! कह दीजिये कि ग्रहगा भी मानपिक विद्या से सम्बन्ध रखना है । "जिस दिन ज्योतिषी लोग तिधि पत्र में ग्रहगा लिखते है लोगों को विश्वास हो जाने के कारण सी दिन ग्रहगा दीखने लगता है, क्या हानि । (पृ. १५२ पं०८)-ज्योतिषी लोग जान चंगे लोगों का निर्यागा नहीं निकालते। बुड्ढे और रगियों का विचार करते हैं। कच्चे दिल वाले इन्हैं सच्चा बना देते हैं। पक्के दिन घाले इन्हें झूठा। समीक्षा-अनेक जवान चंगे लोगों का निर्याशा बराबर ज्योतिषी लोग निकालते हैं। फिर झठ बोलने का ठेका श्राप ने क्यों ले लिय ? और कच्चे दिना पके दिल से ?। जशी जी ! For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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