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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६ ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः ॥ खराव हो गया, वस इस विषय को अधिक बढ़ाने की इच्छा नहीं है इन की आलोचना अधिक नहीं करते आगे अपने निर्दिष्ट की ओर चलते हैं। (ज्यो० १० १० ४५॥ ४६ ) में विचार करने योग्य विषय नहीं एक कल्पित कथा लिखी है। पृ०४७ । ४८ में लिखा है कि मैंने एक हजार लक जन्मपत्र देखे विधवा स्त्री तथा संन्यासियों के जन्म पत्र तक इकट्ठे किये । मैंने जो फल कहे कईवार ऐसे ठीक लगे कि एक दिन मेरी कचहरी में ६ मुकदमों में राजी नामा हो गया। जब हजार कुण्डली देखी तो सच्चा भेद समझ गया। पाठक ! हम नहीं कह सक्ते कि ऊपर की वात कहां तक सच्ची है। यदि आप का कथन सत्य हो तो जरा शोचिये तो विना गुरु लदय के छोटी २ पुस्तकों की देख भाल करने मात्रसे जब भाप अच्छा फलादेश कहने लग गये थे और ६ मुकदमों में राजी नामे करा दिये थे तो ये सब बातें ज्योतिषी वंश के प्रताप से हुई होंगी। यदि आप किसी विद्वान् से कुछ काल अध्ययन कर लेते सिद्धान्त ग्रन्थ पढकर ग्रह गणित तथा पञ्चांग बनाना सीख फलित के बड़े बड़े ग्रन्थों का तत्व समझ कर फलादेश कहते तो वड़े २ लाभ विदित हो जाते वडा पुण्यफल मिलता ॥ यथा दशदिनकृतपापहन्तिसिद्धान्तवेत्ता त्रिदिनजनितदोषंतत्रविज्ञःसएव । करणभगणवेत्ताहन्त्यहोरात्रदोषं जनयतिबहुदोपंतत्रनक्षत्रसूची ॥ हक को श्राप के कहे फलादेश ठीक मिलने में सन्देह जान पड़ता है। ग्रहगणित के दशभेद और बड़े २ ग्रन्थों का मर्म जाने विना सत्य फल ठीक २ नहीं कहा जाता ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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