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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 90 ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः ॥ भृगुसंहिता को मानते थे कुछ २ मुहूर्त भी मान गये । ( म० प्र० पृ० २८ पं० १६ ) एकादशी और त्रयोदशी को छोड़के बाकी में गर्भाधान करना क्यों साहव स्वामी जी का मनुस्मृति से उद्धृत किया यह लेख ज्योतिष से सम्बन्ध रखता है या नहीं ? | ये रात्रि त्याज्य इसी कारण से हैं कि इन में गर्भाधान करने से दुष्ट सन्तान उत्पक्ष होती है। तथा युग्मरात्रियों में पुत्र और प्रयुग्म में कन्या होना मनुजी ने लिखा है। यह फलित नहीं, तो और क्या है। इसीप्रकार संस्कारविधि के लेखों से भी मुहूर्त आदि मानना सिद्ध होता है । और वर्तमान समाजी ज्योतिष की निन्दा भी करते हैं काम पड़ने पर मानते भी हैं। जन्मपत्र बराबर बनाते बनवाते हैं, कष्ट जाने पर ग्रहशान्ति पूजा पाठ भी करा लेते हैं । चश्मा डटा कर समाज में ज्योतिष की निन्दा के गीत भी प्रलापते हैं। इन के पण्डित तथा उपदेशक लोग प्रायः फलित के विरुद्ध लेख लिखने और लेक्चर देने में खूब उछल कूद मचाते हैं । और घर में आ कर इन में अनेक पण्डित फलित के काम से पेट पालते हैं । कहीं सत्यनारायण, कहीं चण्डीपाठ भी पड़ जाते हैं। एक समाजी परिहत ने किसी का एक वर्षफल्म बना र क्या था । और एक मनुष्य का जन्मपत्र का विचार कर रहे थे। मेरे एक मित्र ने समाजी परिहत से कहा कि पण्डित जी भाप भी ज्योतिष को मानते हैं ? ॥ 66 स० [पति हैं, हैं, स्वामी जी ने तो झूठा कहा है, पर मैं ठीक २ फल इस के देख कर कुछ २ सच्चा मानता हूं । प्रश्न – स्वामी जी की बात झूठी, या आप की ? ॥ समा० पं० - स्वामी जो भी थे । मनुष्य सत्य का ग्रहण असत्य का त्याग, हमारा चौथा नियम है कि हम सत्य बात को मानते हैं। स्वामी जी झूठे हों, या मच्छे हों इस से कोई हानि नहीं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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