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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुपाध्यायः॥ इत्यादि से गणितविद्या यरोप अमेरिका अपना लंका से चली मानोगे क्या? नहीं २ केवल नाम उन देशों के हम में पाये हैं। किसी पुस्तक में किसी देश का नाममात्र प्राजाने से उस ही देश से यह विद्या फैली यह कहना वेसमझी नहीं तो और क्या है? ॥ (ज्यो० १० पु०३० )-एक और अध्याय में भूकम्प का फल लिखा है, कि भूकम्प से जिस का भला बुरा होगा। और इन्द्रधनुष के दीखने से किन २ लोगों को शुभ अशुभ होगा फलितविद्या यही है॥ (समीक्षा)-जोशी जी | माप शाखविरुद्ध धात लिमा रहे सभी इस चोपे अध्याय ही में सामवेद के २६ व ब्राह्मण के प्रमाण से भकम्प प्रादि को शान्ति के अर्थ सोमदेवता का पवन हम लिख चुके हैं (तारावर्षाणि चोलकाः पतन्ति धमायन्ति०) तथा-माकाशाद्भूमिःकम्पते इत्यादि-जब कि वेद भाज्ञा देता है कि इस दुष्ट फन की शान्ति करो। फिर माप क्यों वेदोक्त विषय की निन्दा करते हैं? मनु जी ने कहा है “नास्तिकोवेद निन्दकः,, जो वेदोक्त विषय की निन्दा करे वही नास्तिक है। पाठक ! अष्टमखण्ड में इन्द्रधनुष की भी शान्ति है। मणिधनुःपश्येच्छशकाग्रामंप्रविशन्ति० इत्यादि जोशी जी ! देखिये यही फलितविद्या वेद ब्राह्मण सभी के अनुकूल है या नहीं ॥ ( ज्या० ० ० ३०) फलितपुस्तकों में यवनों का बड़ा भादर किया है, "यवनेम कषितं महात्मना,,-यवनाचा: “त. पाह-वद्वयवनः, इत्यादि लिखा है। (समीक्षा)-यवनाचार्य कौन थे? यह हमारे पाठकों को पहिले ही विदित होचुका, यदि यही मान लिया जाय कि पवनाचार्य कोई म्लेकश थे, तब भी कोई हानि नहीं है। जोशी जी का यवनों से बड़ा प्रेम है, क्योंकि For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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