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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिषचमत्कार समीक्षायाः ॥ ६२८ सन में ब्र०सि० लिखा, भास्करने ई० ११५० में शिरोमणि सिद्धान्त रचा, गणेश जी के ग्रहलाघव बनाया, हमारे गणित की इतिश्री हुई वैसे तो और भी ग्रन्थ हैं पर मुख्य यही हैं। (समीक्षा) हमारे जोशी जी ने गणित के इन ग्रन्थोंका तो अंट संट समय लिखही दिया, पर अपने पृ०२४ पं०१४ में लिखे हुए लगंट के ज्योतिष का कुछ पता न लिखा, जोषी जी याद रखिये ! वराहमिहिर जी ने पञ्चसिद्धान्तिका अवश्य व. नायी, पर इममिद्धान्त नहीं बनाया और ब्राह्मगुप्त भी ६२८ ई० में नहीं हुए, आप ने उनका समय भी ठीक नहीं लिखा है। ब्रह्मगुप्त का समय कतिपय विद्वानों ने इस प्रकार निश्चय किया है कि ब्रह्मगुप्त के समय चित्रा नक्षत्र १८३ अंश में घा बराह के समय से चित्रा नक्षन्न तीन अंश पूर्व में अग्रसर हुभा है। अत एव ब्रह्मगुप्त वराहमिहिर जी से २१५ वर्ष पीछे भर्थात् सन् १५९ ई० में हुए थे और बराहमिहर जी का समय आगे लिखेंगे॥ भाप ने लिखा है कि हमारे गणित की इतिश्री हुई, सो पाठक ! हमारे गणित की महीं किन्तु इन के लगंट की इतिश्री हुई होगी। क्योंकि भास्कराचार्य के बाद भी तत्वविवेक सिद्धान्त तथा परमसिद्धान्तादि ग्रन्थ बने और कई करणाग्रन्थ सारणी भादि वर्मा और लम मिष्टान्त इस से पूर्व वना है। और भार्य भट्ट सिद्वान्त भी सन् ईस्वी से कई वर्ष पहिले धन धकाथा । कोगन क माहब का मत है कि ग्रीमीय बीजगणित के प्रा. विष्कारक डिग्रोफाम टुम के समय भार्यभह वर्तमाम थे। हि. प्रोफानटुस सन् ३१९ के प्रागे पीछे किसी समय में हुआ था। याव अपवं चन्द महोदय ने सिद्ध किया है। कि मार्यभट्टमहाराज युधिष्ठिर जी से सोलह शताब्दी के पीछे हुए ॥ (ज्यो० ० ० २७ पं०१४) फलित का नाम पहिले प. हिल चीन और कलहिया के इतिहास में है फिर मिम वालों ने और यूनानियों ने सीखा इत्यादि । For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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