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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३८ ज्योतिषनमस्कार समीक्षायाः ॥ स्थालीपाकं हुत्वा पञ्चभिराज्याहुतिभिरभिजुहोति सोमाय स्वाहा, नक्षत्राधिपतये स्वाहा, शीतपाणये स्वाहा, ईश्वराय स्वाहा, सर्वपाप शमनाय स्वाहेति व्याहृतिभिर्हुत्वा सामगायेत् ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषा- जब कभी प्राकाश से सारागगा ( सितारे ) बहुत पतित हों, ( टू ) वा मुक्कापात हो वा दिशाओंों में धूम्र प्राडादित रहे अथवा अघि लगी मालूम पड़े, वा राहु केतु का उदय होवे वा गरू के सीगों से धुत्रां निकले, वा अनि समतप्त रहे, वा गऊ के स्तनों से रुधिर निकले, या अत्यन्त हिम (पाला) दृष्टिगत हो ये महाउपद्रव के चिह्न हैं उन के शान्त्यर्थं मम देवता का स्मरण कर हवन करे मोर [ सोमं राजानं वरुणं ] मन्त्र से स्थालीपाक की आहुति देकर सोमदेवता के नाम से घृत की आहुति देवे पुनः व्याहृति होम करके स्वस्तिवाचन करे तो उक्त दोष शान्ति हो || ॥ तत्रैव द्वादशः खण्डः ॥ स सर्वान्दिशमन्वावर्त्ततेऽथ यदास्या मानुषाणामतिधृतिमतिदुःखं वा पर्वता स्फुटन्ति निपतन्त्याकाशादभूमिः कम्पते महाद्रुमाउन्मीलन्त्याश्यानः प्लवन्ति तटाकानि प्रज्वलन्ति चतुष्पादः पञ्चपादी भवन्तीत्येवमादीनि तान्येतानि सर्वाणि सूर्यदेवतान्यद्भुतानि प्रायश्चितानि भवन्त्युदित्यं जातवेदसमिति स्थालीपाकं हुत्वा पञ्चभिराज्याहुतिभिरभिजुहोति सूर्य्यायस्वाहा, सर्वग्रहाधिपतये स्वाहा, किरणपाणये स्वाहा, ईश्वराय स्वाहा, सर्वपापशमनाय स्वाहेति व्याहृतिभिर्हुत्वाऽथ साम गायेत् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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